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१२. वीर्य
२. ज्ञानी : अज्ञानी
१. णाणपदीओ पज्जलइ जस्स हियए विसुद्धलेस्सस्स । जिणदिट्ठमोक्खग्गे पणासणभयं ण तस्सत्थि ।।
εξ
(भग० आ० ७६७ )
विशुद्ध लेश्या वाले जिस साधक के हृदय में ज्ञान का प्रदीप जल रहा है उसके लिए जिन भगवान के द्वारा दिखलाये गए मुक्ति-मार्ग में विनाश का भय नहीं है। २. सुहजोएण सुभावं परदव्वे कुणइ रागदो साहू ।
सो तेण हू अण्णणी णाणी एत्तो हु विवरीओ । ।
(मो० पा० ५४)
जो इष्ट वस्तु के संयोग होने पर उस पर द्रव्य में रागवश प्रीति करता है वह उस राग के कारण अज्ञानी होता है । पर द्रव्य के विषय में इससे विपरीत भाव रखने वाला ज्ञानी होता है ।
३. उग्गतवेणण्णाणी जं कम्मं खवदि भवहि बहुएहिं ।
तं णाणी तिहिं गुत्तो खवेइ अंतोमुहुत्तेण' ।। (मो० पा० : ५३) अज्ञानी उग्र तप से जितने कर्म बहुत भवों में क्षय करता है, तीन गुप्ति से गुप्त ज्ञानी उतने ही कर्म अन्तरमुहूर्तमात्र में क्षय करता है।
४. जत्थेव चरदि बालो परिहारण्हूवि चरदि तत्थेव ।
वज्झदि पुण सो बालो परिहारण्हू विमुच्चदि सो । । (मूल० ५ : १५१)
जहाँ बाल-अज्ञानी विचरण करता है, वहीं त्यागी भी विचरण करता है परन्तु बाल - अज्ञानी बंधन को प्राप्त होता है और त्यागी कर्मों से मुक्त होता है ।
५. जहा खरो चंदणभारवाही भारस्स भागी णहु चंदणस्स । एवं खु णाणी चरणेण हीणो, नाणस्सभागी ण हु सुग्गईए । । (वि० आ० भा० ११५८)
१. प्रव० ३. ३८
जं अण्णाणी कम्मं खवेइ भवसयसहस्सकोडीहिं ।
तं णाणी तिहिगुत्तो खवेइ उस्सासमेत्तेण ।।
जैसे चन्दन का भार ढोने वाला गधा केवल बोझ का भागी होता है, चंदन का अधिकारी नहीं, वैसे ही चरित्र से हीन ज्ञानी केवल ज्ञान का बोझा ढोता है, सुगति का अधिकारी नहीं होता ।