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________________ महावीर वाणी सुव्रती पुरुष, अल्प खाये, अल्प पीवे, अल्प बोले । वह क्षमावान हो, लोभादि से निवृत्त हो, जितेन्द्रिय हो, गृद्धि-रहित हो तथा सदाचार में सदा यत्नवान् हो । τι १०. अणु माणं च मायं च तं पण्णिाय पंडिए । आयट्ठे सुयादाय एवं वीरस्स वीरियं । । ( सू १, ८ : १८ ) पंडित पुरुष बुरे फल को जान अणुमात्र भी माया और मान का त्याग करे। मोक्षार्थ को - ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तपरूपी मुक्ति मार्ग को - ग्रहण कर धैर्यपूर्वक क्रोधादि विकारों को जीतने की साधना करे। यही वीर पुरुष का अकर्म वीर्य है - उसका वास्तविक पराक्रम है। २१. जे याऽबुद्धा महाभागा वीरा ऽसम्मत्तदंसिणो । असुद्धं तेसिं परक्कतं सफलं होइ सव्वसो ।। ( सू १,८ : २३) जो अबुद्ध हैं - परमार्थ को नहीं जानते और सम्यग्दर्शन से रहित हैं, ऐसे संसार में पूजे जानेवाले वीर पुरुषों का सांसारिक पराक्रम अशुद्ध होता है और वह संसारवृद्धि में सर्वशः सफल होता है। २२. जे उ बुद्धा महाभागा वीरा सम्मत्तदंसिणो । सुद्धं तेसिं परक्कतं अफलं होइ सव्वसो ।। ( सू १,८ : २४) जो बुद्ध हैं - परमार्थ को जाननेवाले हैं और सम्यग्दर्शन के सहित हैं, उन महाभाग वीरों का आध्यात्मिक पराक्रम शुद्ध होता है और वह संसार वृद्धि में सर्वशः निष्फल होता है। २३. बालस्स पस्स बालत्तं अहम्मं पडिवज्जिया । चिच्चा धम्मं अहम्मिट्ठे नरए उववज्जई ।। (उ०७ : २८) हे मनुष्य ! तू बाल जीव की मूर्खता को देख । वह अधर्म को ग्रहण कर तथा धर्म को छोड़ अधर्मिष्ठ हो नरक में उत्पन्न होता है। २४. धीरस्स पस्स धीरत्तं सव्वधम्माणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्मं धम्मिट्ठे देवेसु उववज्जई ।। (उ० ७ : २६) हे मनुष्य ! तू धीर पुरुष की धीरता को देख । वह सब धर्मों का पालन कर, अधर्म को छोड़ धर्मिष्ठ हो देवों में उत्पन्न होता है । २५. तुलियाण बालभावं अबालं चेव पण्डिए । चइऊण बालभावं अबालं सेवए मुणि ।। ( उ०७ : ३०) पंडित मुनि बाल-भाव और अबाल-भाव की तुलना कर बाल-भाव को छोड़कर अबाल-भाव का सेवन करता है।
SR No.006166
Book TitleMahavir Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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