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नेमिनाथमहाकाव्य : कीतिराज उपाध्याय
८१ श्रीकृष्ण के कपटपूर्ण षड्यन्त्र के परिणाम प्रतीत होते हैं । माधव नेमि से अपना राज्य सुरक्षित रखने के लिए पहले विवाह द्वारा उनका तेज जर्जर करने का प्रयत्न करते हैं और फिर वध्य पशुओं के हृदयद्रावक चीत्कार से उनके वैराग्य को दीप्त कर उन्हें संसार से विरक्त कर देते हैं (७१।१४३-१४४, १५३-१६८) । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में नेमिचरित को सम्पूर्ण आठवें पर्व का विषय बनाने का उपक्रम किया गया है किन्तु उसका अधिकांश श्रीकृष्ण तथा उनके अभिन्न सखा पाण्डवों के इतिवृत ने हड़प लिया है जिसके फलस्वरूप मूल कथानक दो सर्गों (१,६) में सिमट कर रह गया है और यह पर्व त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित का हरिवंश बन गया है।
नेमिप्रभु के चरित के आधार पर जैन-संस्कृत-साहित्य में दो महाकाव्यों की रचना हुई है। कीतिराज के प्रस्तुत काव्य के अतिरिक्त वाग्भट का नेमिनिर्वाण (१२ वीं शताब्दी) इस विषय पर आधारित एक अन्य महत्त्वपूर्ण कृति है। दोनों काव्यों में प्रमुख घटनाएँ समान हैं, किन्तु उनके प्रस्तुतीकरण तथा अलंकरण में बहुत अन्तर है । वाग्भट ने कथावस्तु के स्वरूप और पल्लवन में बहुधा हरिवंशपुराण का अनुगमन किया है । नेमिनिर्वाण में वर्णित जिन-जन्म से पूर्व समुद्रविजय के भवन में रत्न-वृष्टि, नेमिनाथ की पूर्वभवावलि, तपश्चर्या, केवलज्ञान प्राप्ति, धर्मोपदेश तथा निर्वाणप्राप्ति आदि घटनाएँ जिनसेन के विवरण पर आधारित हैं। नेमिनाथ महाकाव्य का आधार-स्रोत हेमचन्द्राचार्य का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित है। कीतिराज ने त्रि० श० पु० चरित के अकाव्योचित प्रसंगों को छोड़कर उसमें वर्णित नेमिचरित को यथावत् ग्रहण किया है। दोनों में शिवा के स्वप्नों की संख्या (१४) तथा क्रम समान है ।' अपराजित विमान से च्युत होकर जिनेश्वर, दोनों काव्यों के अनुसार' कात्तिक कृष्णा द्वादशी को माता के गर्भ में अवतरित होते हैं। जिन-माता को अस्वापिनी विद्या से सुलाने का उल्लेख हेमचन्द्र के काव्य में उपलब्ध नहीं है। अपने कथानक को पुराण-कथा की भांति विशृंखलित होने से बचाने के लिये कीतिराज ने नेमिप्रभु के पूर्वभवों के अनुपातहीन नीरस वर्णनों को काव्य में स्थान नहीं दिया। उनके तप, समवसरण तथा धर्मोपदेश का भी चलता-सा उल्लेख किया है जिससे उसका कथानक नेमिनिर्वाण जैसे विस्तृत वर्णनों से मुक्त है । नेमिनाथ के विवाह से विमुख होने तथा राजीमती के तज्जन्य करुण विलाप का मार्मिक प्रकरण भी हेमचंद्र
५. नेमिनाथमहाकाव्य, २.१-१४, १.६०-६१, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अंग्रेजी मनुवाद), गायकवाड ओरियण्टल सीरीज, संख्या १३६, जिल्द ५, पृ० १६४