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काव्यमण्डन : मण्डन
वीराः सुधीरा जहिताहितैस्तैः कृतं विषादं विधिनिर्मितं तम् । अत्यन्तपापस्य फलानुभूतिरिहैव लभ्येति वदन्ति सन्तः ॥
इसी सर्ग में युधिष्ठिर की शान्तिवादिता का प्रतिवाद करने वाली भीम की वीरोचित उक्तियाँ उसके दर्प तथा प्रचण्डता को व्यक्त करती हैं । उसका स्पष्ट मत है कि धर्मराज ने कौरवों पर विश्वास करके नीतिविरुद्ध कार्य किया है । हिंसक जन्तु के समान दुर्जन कभी अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता । अनुकूल पदावली ने इन उक्तियों की प्रभावशालिता को दूना कर दिया है ।
ते दुर्जनाः सज्जनसन्निधाने हिंस्रा वसन्तो जनपावनेऽपि । जहत्यहो नैव निजस्वभावं गंगाजले नत्रगणा इवामी ॥। ४.३७ treatise सहायमेत्य महामृधे मां प्रबलानिलं वा । धनंजय धक्ष्यति दीप्ततेजाः सुबाधवो नः परसैन्यवन्याम् ।।४.३३ युद्ध आदि कठोर प्रसंगों में मण्डन की भाषा, यथोचित वातावरण के निर्माण के लिए, सरलता तथा सहजता को छोड़ कर, प्रयत्नसाध्य बन जाती है । उसमें ओजगुण व्यंजक चुने- चुनिन्दे शब्दों की झड़ी लग जाती है, विशालकाय समासों की लड़ी बनती जाती है और फलतः वर्ण्य दृश्य पाठक के मानस चक्षुओं के सामने मूर्त हो जाता है । श्मशान की भीषणता का कर्कश वर्णन पहले उद्धृत किया जा चुका है । स्वयम्वर में निराश होकर दुर्योधन अपने वीरों को ब्राह्मण वेशधारी अर्जुन पर आक्रमण करने का आदेश देता है । इससे मण्डप में खलबली मच जाती है तथा वह सागर का रूप धारण कर लेता है । इस सम्भ्रम के चित्रण में प्रयुक्त समाससंकुल ओजपूर्ण भाषा परिस्थिति के सर्वथा अनुरूप है ।
परिस्फूर्जत्खड्गस्फुरदुरगसंचार विषमः
परिप्रेखत्सखेटकक मठकूटोऽतिरटितः ।
प्रतापौर्वज्वालोऽस्तमितरिपुशौर्योष्ण किरणः
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ततोऽभाक्षीत्क्षोभं प्रबलबलराजन्यजलधिः ॥ १२. ६८
मण्डन ने अपने काव्य में समासबहुला भाषा का बहुत प्रयोग किया है । तीर्थाटन के समय विभिन्न नदियों तथा तीर्थों के अधिष्ठाता देवों की स्तुति में भाषा का विकट रूप दिखाई देता है । यमक के अबाध गुम्फन तथा स्रग्धरा जैसे दीर्घ छन्दों के प्रयोग ने भाषा को, कहीं-कहीं तो, अतीव दुरूह बना दिया है । अष्टमूर्ति की स्तुति में जो भाषा प्रयुक्त की गयी है, उसे सुनकर भगवान् आशुतोष की बुद्धि भी चकरा गयी होगी । ताण्डव के वर्णन में तो विकट समासान्त भाषा नृत्य की उद्धतता तथा प्रचण्डता के अनुकूल मानी जाएगी परन्तु हृदय के सहज निश्छल भावों को व्यक्त करने वाले स्तोत्रों में यह क्षम्य नहीं । स्पष्टतः काव्यमण्डन के ये प्रसंग प्राचीन