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जैन संस्कृत महाकाव्य
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सीकरी में मिले थे । निश्चय ही पद्मसुन्दर का निधन इससे पूर्व हो चुका होगा । • पद्मसुन्दर का प्रमाणसुन्दर शायद सम्वत् १६३२ की रचना है । इसी आधार पर पण्डित नाथूराम प्रेमी ने उनकी मृत्यु सम्वत् १६३२ तथा १६३९ के बीच मानी है । परन्तु यदुसुन्दर की प्रौढता को देखते हुए यह पद्मसुन्दर की अन्तिम कृति प्रतीत होती है। हीरसौभाग्य में जिस मार्मिकता से सम्राट् के भावोच्छ्वास का निरूपण किया है उससे भी संकेत मिलता है कि पद्मसुन्दर का निधन एक-दो वर्ष पूर्व अर्थात् सम्वत् १६३७-३८ (सन् १५८०-१५८१ ) के आसपास हुआ था ।
अकबर तथा पद्मसुन्दर की मैत्री की पुष्टि जैन कवि के अन्य ग्रन्थों से भी होती है । अकबरशाहि शृंगारदर्पण से पता चलता है कि अकबर की सभा में पद्मसुन्दर को उसी प्रकार प्रतिष्ठित पद प्राप्त था, जैसे जयराज बाबर को मान्य था और आनन्दराय (सम्भवतः आनन्दमेरु ) हुमाऊं को' । हर्षकीतिरचित धातुपाठवृत्ति - धातुतरंगिणी - की प्रशस्ति से संकेत मिलता है कि पद्मसुन्दर न केवल अकबर की सभा में समादृत थे अपितु उन्हें जोधपुरनरेश मालदेव से भी यथेष्ट सम्मान प्राप्त था । अकबर की राजसभा में किसी महापण्डित को पराजित करने के उपलक्ष्य में पद्मसुन्दर को सम्राट् द्वारा कम्बल, ग्राम तथा पालकी से पुरस्कृत करने का भी प्रशस्ति में उल्लेख किया गया है ।
साहेः संसदि पद्मसुन्दरगणिजित्वा महापण्डितं
क्षौम-ग्राम- सुखासनाद्य कबरसाहितो लब्धवान् । हिन्दुकाधिप मालदेवनृपतेर्मान्यो वदाभ्योऽधिकं
श्रीमद्बोधपुरे सुरेप्सितवचाः पद्माह्वयः पाठकः ॥ १०॥
संवत् १६२५ में, तपागच्छीय बुद्धिसागर से, खरतर साधुकीर्ति की, सम्राट अकबर की सभा में, पौषध की चर्चा हुई थी, जिसमें साधुकीत विजयी हुए थे । उस
( आ ) हीरसौभाग्य, १४ । ६६, स्वोपज्ञटीका काव्यानि रघुवंश - मेघदूत - कुमारसम्भव-किरात-माघ- नैषध-चम्पू- कादम्बरी पद्मनन्द-यवु सुन्दराद्यानि ।
५. नाथूराम प्रेमी: जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३९६
६. शृंगारदर्पण, प्रशस्ति, २ .
७. यह वही मालवेव (सन् १५३९-६२ ) है, जो अपनी असीम महत्त्वाकांक्षा, अधिनायकवादी वृत्ति तथा धोखेबाजी के कारण कुल्यात था और जिसने सन् १५३९ में बीकानेर के शासक जैतसिंह का वध किया था। Herman Goetz : Art and Architecture of Bikaner State, Oxford, 1950, P. 39-40.