________________
६२
जैन संस्कृत महाकाव्य
पणता के कारण उनके राज्य में समय पर वर्षा होती है, पृथ्वी रत्न उपजाती है और प्रजा चिरजीवी है । और वे स्वयं राज्य को इस प्रकार निश्चिन्त होकर भोगते हैं जैसे कामी कामिनी की कंचन-काया को ।
समृद्धमभजद्राज्यं स समस्तनयामलम् । __कामीव कामिनीकार्य ससम-स्तन-यामलम् ॥ १.५४ राजीमती
राजमती काव्य की दृढनिश्चयी सती नायिका है। वह शील-सम्पन्न तथा अतुल रूपवती है। उसे नेमिनाथ की पत्नी बनने का सौभाग्य मिलने लगा था, किंतु क्रूर विधि ने, पलक झपकते ही, उसकी नवोदित आशाओं पर पानी फेर दिया। विवाह में भावी व्यापक हिंसा से उद्विग्न होकर नेमिनाथ दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं । इस अकारण निराकरण से राजीमती स्तब्ध रह जाती है। बन्धुजनों के समझाने बुझाने से उसके तप्त हृदय को सान्त्वना तो मिलती है, किन्तु उसका जीवन कोश रीत चुका है। वह मन से नेमिनाथ को सर्वस्व अर्पित कर चुकी थी, अत: उसे संसार में अन्य कुछ भी ग्राह्य नहीं। जीवन की सुख-सुविधाओं तथा प्रलोभनों का तृणवत् परित्याग कर वह तप का कंटीला मार्ग ग्रहण करती है और केवलज्ञानी नेमिप्रभु से पूर्व परम पद पाकर अद्भुत सौभाग्य प्राप्त करती है। उग्रसेन
भोजपुत्र उग्रसेन का चरित्र मानवीय गुणों से भूषित है। वह उच्चकुल-प्रसूत तथा नीतिकुशल शासक है । वह शरणागतवत्सल, गुणरत्नों की निधि तथा कीतिलता का कानन है । लक्ष्मी तथा सरस्वती, अपना परम्परागत वैर छोड़ कर, उसके पास एक-साथ रहती हैं। विपक्षी नपगण उसके तेज से भीत होकर कन्याओं के उपहारों से उसका रोष शान्त करते हैं। अन्य पात्र
शिवादेवी नेमिनाथ की माता है। काव्य में उसके चरित्र का विकास नहीं हुआ है। प्रतीकात्मक सम्राट मोह तथा संयम राजनीतिकुशल शासकों की भाँति आचरण करते हैं। मोहराज दूत कैतव को भेज कर संयम-नृपति को नेमिनाथ का हृदय-दुर्ग छोड़ने का आदेश देता है। दूत पूर्ण निपुणता से अपने स्वामी का पक्ष प्रस्तुत करता है। संयमराज का मन्त्री विवेक दूत की उक्तियों का मुंह तोड़ उत्तर देता है। भाषा
नेमिनाथमहाकाव्य की सफलता का अधिकांश श्रेय इसकी प्रसादपूर्ण तथा प्राजल भाषा को है । उक्तिवैचित्र्य, अलंकरणप्रियता आदि समकालीन प्रवृत्तियों के