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पएसीचरियं
प्रथम सर्ग
१. एक बार आमलकल्पा नगरी में चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर का शिष्यों सहित आगमन हुआ। वे देवता और मनुष्यों द्वारा पूजित थे।
२. प्रभु का आगमन सुनकर मनुष्य अहंपूर्विका उन्हें वंदन करने के लिए आते है और अपने भाग्य की सराहना (प्रशंसा) करते हैं।
३. उनका आगमन सुनकर राजा श्वेत अपनी रानी के साथ प्रभु के पास आया।
४-५. अवधिज्ञान से आमलकल्पा नगरी में प्रभु का आगमन जानकर देव परिवार सहित सधर्मा सभा में स्थित सूर्याभ नामक देव ने अपने आसन से उतर कर वहीं से भगवान् को भक्तिपूर्वक वंदना की।
६.जिनका जीवन त्यागमय और परोपकारपूर्ण है उनके चरणों में कौन वंदन नहीं करता ?
७. भगवान महावीर को नमस्कार कर सूर्याभ देव ने मन में चिंतन किया कि मुझे आमलकल्पा नगरी में जाकर प्रभु को साक्षात् वंदन करना चाहिए।
८. वह देव परिकर सहित आमलकल्पा नगरी में जहाँ भगवान् महावीर ठहरे थे वहाँ शीघ्र आया।
९. उसने भगवान् को विधिपूर्वक वंदन किया और ये प्रश्न पूछे- क्या मैं भवसिद्धिक हूँ या अभवसिद्धिक?
१०. क्या मैं सम्यग्दृष्टि हूँ या मिथ्यादृष्टि ? अपरित्तसंसारी हूँ या परित्तसंसारी?
.. ११. क्या मैं सुलभबोधि हूँ या दुलर्भबोधि? आराधक हूँ या विराधक ?