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पएसीचरियं
मंगलायरणं
काऊण णिअगुरूणं, अणंतबलजुआणं य चलणेसुं । वंदणं सभत्तीए, रएमि हं पएसीचरिअं ॥१॥ लहिऊण साहुसंगं, अहम्मिअपुरिसा वि होति धम्मिआ । णिदंसणं अस्स इणं, सिक्खप्पयं पएसिचरिअं ॥२॥
मंगलाचरण
१. मैं अनंतशक्ति संपन्न अपने गुरुओं के चरणों में भक्तिपूर्वक वंदन कर प्रदेशी - चरित्र की रचना करता हूँ।
२. साधु- संगति को पाकर अधार्मिक व्यक्ति भी धार्मिक हो जाते हैं। शिक्षाप्रद प्रदेशी-चरित्र इसका निदर्शन है।
(१) आर्याछंद