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बंकचूलचरियं
३६. यदि इन घावों में अभी कौवे का मांस भर दिया जाये तो ये भर सकते हैं। अन्य कोई उपाय दिखाई नहीं देता।
३७. वैद्य के मुख से अपने रोगनाशक इस उपाय को सुनकर उस (बंकचूल) को चौथे नियम की स्मृति हो गई। उसने तत्काल कहा
___३८. मैं कभी इस औषधि का प्रयोग नहीं कर सकता। मुझे पहले से ही कौवे के मांस खाने की प्रतिज्ञा है।
३९. बंकचूल की यह वाणी सुनकर राजा ने स्नेहपूर्वक उसे कहा- पुत्र ! दूसरा कोई उपाय दिखाई नहीं देता।
४०. सभी श्रेष्ठ औषधियां निरर्थक हो गई हैं। यही एक अवशिष्ट रही है। निश्चित ही तुम्हें इसका प्रयोग करना चाहिए।
४१. यदि जीवन सुरक्षित होगा तो मनुष्य अनेक नियमों का पालन कर सकता है । मृत व्यक्ति क्या कर सकता है ?
४२. राजा की बात सुनकर बंकचूल ने कहा- पिताजी ! यह शरीर तो एक दिन निश्चित ही नष्ट हो जायेगा।
४३. यदि व्रत की रक्षा करते हुए यह नष्ट हो जाता है तो इससे अन्य श्रेष्ठ क्या है ? जो व्यक्ति व्रत को तोड़कर शरीर की रक्षा करता है वह अधम गति में जाता है।
४४. अत: प्रचुर कष्ट आने पर भी मैं नियम को नही तोडूंगा । इस शरीर में अब मेरी कुछ भी आसक्ति नहीं है।
४५. बंकचूल की वाणी सुनकर राजा मोह के कारण दुःखी हुआ। उसने सोचा- क्या उपाय किया जाए जिससे यह मेरी बात मान ले।
४६. ऐसा चिन्तन करते हुए उसके ध्यान में एक उपाय आया कि इसकी जिनदास के साथ बहुत मित्रता है।
४७. यदि वह यहां आकर इसे अभी समझाए और यदि यह उसकी बात मान ले तो मेरा प्रयत्न सफल होगा।
४८. ऐसा सोचकर राजा ने अपने एक दूत को बुलाकर कहा- तुम अभी शीघ्र शालिग्राम जाओ।