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बंकचूलचरियं
४९. उन कृपालु आचार्य ने मेरे गांव में चार मास निवास किया। लेकिन मैंने उनका लाभ नहीं उठाया। मैं भाग्यहीन हूं।
५०. भाग्यहीन व्यक्ति घर के आंगन में आई हुई लक्ष्मी को दुत्कारता है, रत्न को पत्थर समझ कर फेंक देता है और कल्पवृक्ष को शीघ्र तोड़ देता है । _ ५१. अब दुःख करने से क्या होगा?व्रतों की दृढ़ता से रक्षा करनी चाहिए। वह भविष्य में निश्चित ही हितकारी होगी, इसमें तनिक भी मन में संशय नहीं है।
षष्ठ सर्ग समाप्त