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बंकचूलचरियं
३७. आज्ञा पाकर उसने शब्द किया लेकिन आश्चर्य है कोई भी नहीं उठा। तब बंकचूल ने कहा-तुम जाकर सबको उठाओ।
३८. उसने जाकर सोए हुए भीलों को उठाने की चेष्टा की। लेकिन कोई भी नहीं उठा तब वह विस्मय में पड़ गया।
३९. उसने बंकचूल से कहा- कोई भी नहीं उठता है । यह सुनकर मन में विस्मित हुआ बंकचूल शीघ्र उनके पास आया।
४०. उसने हाथ से उनके शरीर का स्पर्श किया। लेकिन कोई भी हिला-डुला नहीं। तब उसने मन में यह निर्णय किया कि ये सब मर गए हैं।
४१-४२. सब अभी कैसे मृत्यु को प्राप्त हो गए ? इसका रहस्य क्या है ? क्या किसी ईर्ष्यालु देव ने यह कार्य किया है ? या देखने में सुन्दर और सुगन्धि-युक्त ये फल तो इनकी मृत्यु का कारण नहीं है।
४३. तब वह उन फलों को देखने के लिए वहां गया जहां फल लगे थे। उसने किसी पथिक से पूछा-इन फलों का क्या नाम है ?
४४. तब पथिक ने कहा- ये किंपाक फल हैं। जो व्यक्ति इन्हें खाता है वह निश्चित ही मर जाता है।
४५. पथिक की बात सुनकर बंकचूल ने मन में सोचा–मैने उनको खाने के लिए बहुत मना किया लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं मानी।।
४६. सभी मेरी आज्ञा का पालन करने वाले थे। लेकिन उन्होंने आज मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया। जब मनुष्य के बुरे दिन आते हैं तब उसकी बुद्धि भी विपरीत हो जाती है।
४७. मैं प्रतिज्ञाबद्ध था अत: मैने नहीं खाया और अभी मृत्यु से बच गया। जिन आचार्य ने मुझे नियम दिलाया था उनका मेरे पर कितना उपकार है।
४८. उनकी कृपा से मैं काल कवलित नहीं हुआ। अन्यथा मेरी वही दशा होती जो अभी इनकी हुई है।