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बंकचूलचरियं
१३. अन्य उपाय न देखकर तब सभी भील खिन्न होकर बंकचूल के साथ अपने गांव की ओर लौट चले।
१४. मार्ग में सभी भील भूख और प्यास से पीड़ित हो गए । वे किसी वृक्ष के नीचे ठहर कर अपनी थकान दूर करने लगे।
१५. बाद में कुछ भील भक्ष्य फल लाने चले गए। वे फलों को ढूंढते हुए किसी वन में आए।
१६-१७. वहां फलों से युक्त वृक्षों को देखकर उनके मन में प्रसन्नता हुई। प्रचुर फल लेकर वे बंकचूल के पास आए और उन फलों को रखकर बोले- हमने इन फलों को बहुत श्रम से प्राप्त किया है । आप इन्हें शीघ्र खाएं और हमें भी खाने की आज्ञा दें।
१८. स्वामिन् ! हम बहुत देर से भूखे हैं । अब हमसे भूख सही नहीं जाती। अत: आप देरी न करें।
१९-२०. उनका यह कथन सुनकर बंकचूल को उन चार नियमों की स्मृति हो गई जो उसने आचार्य (चंद्रयश) के पास ग्रहण किए थे। उनमें एक यह भी था कि मैं जीवन पर्यन्त अज्ञात फल नहीं खायूँगा । अत: उसने सोचा- मुझे इनका नाम पूछना चाहिए।
२१. बंकचूल ने उनसे कहा- इनका क्या नाम है ? स्वामी का यह कथन सुनकर वे बोले- हम नहीं जानते हैं।
२२. तब बंकचूल ने उनसे कहा-मैं इनको नहीं खायूँगा । क्योंकि मेरी यह प्रतिज्ञा है कि मैं कभी भी अज्ञात फल का भक्षण नहीं करूंगा।
२३. उसका कथन सुनकर उन्होंने कहा- हम इनका नाम नहीं जानते । किन्तु इनकी सुगन्धि को देखकर प्रतीत होता है कि ये स्वादिष्ट हैं।
२४. अब आप नाम आदि पूछने में विलम्ब न करें । आप इन्हें शीघ्र खाएं और हम भूखों को भी खाने का आदेश दें।