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बंकचूलचरियं
७४. दृढ़ मन से पाले हुए नियम मनुष्य की रक्षा करते हैं। उससे बहुत विपत्तियां नष्ट हो जाती हैं।
७५. इस प्रकार बंकचूल को अंतिम शिक्षा देकर आचार्य ने प्रसन्नमना वहां से विहार कर दिया।
७६. आप पुन: हमें यहां पर दर्शन देना-यह प्रार्थना कर बंकचूल अपने स्थान पर आ गया।
पंचम सर्ग समाप्त