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बंकचूलचरियं
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पंचम सर्ग
१. सूर्य की किरणों से तप्त भूमि को शान्त करने के लिए वर्षा काल आ गया, जो मनुष्यों को आनन्द देने वाला है ।
२. शुष्क नदी और तालाबों को शीघ्र ही जलमय बनाने के लिए वर्षाकाल आ गया, जो मयूरों को आनन्द देने वाला है ।
३. शुष्क भूमि को हरित वस्त्र धारण कराने के लिए वर्षाकाल आ गया, जो किसानों को आनन्द देने वाला है ।
४. प्राचीन काल में सड़के नहीं थीं । अतः मनुष्यों को वर्षाकाल में आनेजाने में बहुत कठिनाई होती थी ।
५. मार्गवर्ती तालाब और नदियां जल से भर जाती थीं जिससे उनको पार करना मुश्किल होता था ।
६. अत: उस समय में मनुष्य वर्षा के पूर्व ही अपनी यात्रा कर लेते थे जिससे बाद में वह दुःखप्रद न हो ।
७. मुनिगण भी वर्षा के पूर्व ही निश्चित स्थान में पावस करने चले जाते थे जिससे कोई बाधा न हो ।
८. उस समय में आचार्य चंद्रयश अपने शिष्यों के साथ किसी निश्चित स्थान में पावस करने जा रहे थे ।
९. उनकी हार्दिक इच्छा थी कि वर्षा के पूर्व ही निश्चित स्थान पर पहुंचना । किन्तु विधि अन्य ही चाहती है ।
१०. उनके मार्ग में अकल्पित प्रचुर वर्षा हुई। सभी तालाब और नदियां जलमग्न हो गई ।
११. शुष्क भूमि पर हरे अंकुर उत्पन्न हो गए। तब उनके सामने अकल्पित स्थिति आ गई ।