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बंकचूलचरियं
मंगलायरणं
लोअम्मि' जस्स णामो, मंतरूवगो पच्चूहणासगो । तं देपेयं झाडं णिअसुद्धमाणसे पइवलं ॥ १ ॥ रएमि पाइअगिराअ, बंकचूलचरियं सिक्खप्पयं । सो गुरू होज्ज इमाअ, कव्वरयणाए साहिज्जो || २ || (जुग्गं) |
मंगलाचरण
१ - २. जिनका नाम संसार में मंत्र रूप और विघ्ननाशक है उन दीपा - सुत ( भिक्षु स्वामी) का मैं अपने पवित्र मन में प्रतिपल ध्यान करके प्राकृत भाषा में शिक्षाप्रद बंकचूल चरित्र की रचना करता हूँ । वे गुरुदेव मेरी इस काव्य रचना में सहायक हों (युग्म)
१. आर्याछंद, लक्षण - यस्या: प्रथमे पादे, द्वादशमात्रास्तथा तृतीयेऽपि । अष्टादश द्वितीये चतुर्थे पञ्चदश सार्या ॥