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मियापुत्तचरियं
प्रशस्ति १. वर्तमान में जैनधर्म में प्रमुखरूप.से दो संप्रदाय हैं - (१) दिगम्बर (२) श्वेताम्बर ।
२. श्वेताम्बरों में प्रमुख तीन संप्रदाय है - (१) मन्दिर मार्गी (२) स्थानकवासी (३) तेरापंथ ।
३. उनमें तेरापंथ संसार में एकता से प्रसिद्ध है । उसमें सबसे प्रमुख एक ही आचार्य होते हैं।
४. आचार्य जहां भेजते है वहां मुनिजन हर्षपूर्वक जाते हैं। वे जो करने के लिए कहते हैं उसे सभी साधु करते हैं।
५. उसमें सभी साधु आचार्य के ही शिष्य होते हैं। कोई भी साधु किसी को भी अपना शिष्य नहीं बनाता।
६. उस तेरापंथ के प्रथम आचार्य श्री भिक्षु स्वामी थे। जो आचारकुशल तथा वीरवचनों में श्रद्धावान् थे।
७. उसके दूसरे आचार्य श्री भारमल्ल जी थे। तीसरे आचार्य श्री ऋषिराय थे (जिन्हें 'ब्रह्मचारी' शब्द से स्वामीजी ने अलंकृत किया था) । चौथे जीतमल जी (जिन्हें जयाचार्य भी कहा जाता है) और पांचवें मघराज जी थे।
८. उसके छठे आचार्य माणकलाल जी, सातवें आचार्य डालचंद जी और आठवें आचार्य कालुराम जी थे। नवमें आचार्य श्री तुलसी हैं।
९. उन्होंने विद्वान् मुनि नथमल जी को अपना भार दे दिया है और उनका नाम बदल कर 'आचार्य महाप्रज्ञ' रखा है।
१०. जिनके शासन में तेरापंथ संसार में विश्रुत हुआ, उन गुरुदेव की महत्ता का मैं अपनी तुच्छबुद्धि से क्या वर्णन करूं?
११. जिनके शासन में साधुसंघ में शिक्षा का विस्तार हुआ । अनेक मुनि संस्कृत, प्राकृत में पारंगत हुए।
१२. उन गुरुदेव की प्रेरणा पाकर मैंने (विमल मुनि ने) प्राकृत भाषा का अध्ययन किया और उसमें ये रचनाएं की है।
१३. गुरुदेव की शक्ति से इन काव्यों की रचना विभिन्न समय और विभिन्न नगरों में हुई है । मैं तो सिर्फ निमित्तमात्र हूं।
१४. अनेक शिक्षाओं से युक्त इन काव्यों को पढ़कर प्राकृत अध्येता यदि लाभान्वित होंगे तो मेरा श्रम सार्थक होगा।
. विमलमुनि विरचित 'प्राकृतप्रत्यूष' समाप्त