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पएसीचरियं
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६५. केशी स्वामी ने पूछा- क्या कूटगृह के कोई छिद्र होता है ? राजा ने कहा- नहीं। तब केशी स्वामी ने कहा
६६-६७. राजन् ! जिस प्रकार छिद्र के बिना भेरी का शब्द शीघ्र बाहर चला जाता है उसी प्रकार अप्रतिहतगतिवाला जीव पहाड़, पृथ्वी, शिला का भेदन कर समस्त लोक में जाने में समर्थ है। अत: तुम विश्वास करो-जीव शरीर से भिन्न है, वह एकरूप नही है।
६८. केशी स्वामी के इस प्रकार के वचन को सुनकर राजा ने दूसरी बात कही । एक बार मैं राजसभा में अनेक मनुष्यों के साथ था।
६९. मेरा नगररक्षक एक चोर को लेकर आया। उसके प्रचुर अपराध को देखकर मैंने उसे लोहे के कुंड में गिरा दिया।
७०. कुंड को अच्छी तरह ढक कर मैंने वहां कुछ व्यक्तियों को नियुक्त कर दिया। जब अनेक दिन व्यतीत हो गये तब मैंने उसे खोला।
७१. मैंने कुंड को कीड़ों से संकुल देखा किंतु कोई छिद्र दिखाई नहीं दिया। बिना छिद्र के वहां कीड़े कैसे आ गये, मेरे मन में आश्चर्य हुआ ?
७२. कीड़ों को वहां देखकर मैंने जान लिया कि जीव शरीर से भिन्न नहीं है और यह मेरा दृढ मत है । अन्यथा वहां कीड़े कहां से आते?
७३. राजा के इस वचन को सुनकर केशी श्रमण ने कहा- क्या तुमने धंत लोहमय गोले को देखा है।
७४. राजा ने कहा- हां । केशी स्वामी ने पुन: पूछा- क्या वह गोला छिद्रमय होता है जिससे अग्नि उसमें प्रविष्ट होती है ?
७५-७६. राजा ने कहा- नहीं। तब केशी स्वामी ने कहा- राजन् ! जिस प्रकार छिद्र के बिना भी अग्नि गोले में प्रविष्ट हो जाती है उसी प्रकार जीव भी सर्वत्र जाने के लिए समर्थ है । अत: मन में कोई भी शंका मत करो । केशी स्वामी की यह वाणी सुनकर राजा ने दूसरी बात कही।
____७७. एक व्यक्ति यौवनकाल में जितना लोहे का भार ढोने के लिए समर्थ है उतना वह वृद्धावस्था को प्राप्त कर ढोने में समर्थ नहीं है।