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पएसीचरियं
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३९-४०. केशी स्वामी के युक्तिपूर्वक वचन को सुनकर राजा ने कहा- यदि इन कारणों को लेकर नारकी यहां आने के लिए समर्थ नहीं है तब मेरी दूसरी बात सुनें जिससे मेरा मत अच्छी तरह सिद्ध होगा । मेरी दादी सदा धर्म में लीन रहती थी। वह मेरे प्रति स्नेहिल थी ।
४१. आपके मतानुसार वह मर कर देवलोक गई है । यदि वह आकर मुझे कहे - पौत्र ! तुम धर्मलीन बनो ।
४२. धर्म मनुष्यों का त्राण है । धर्मी व्यक्ति सुगति को प्राप्त करता है । धर्म के प्रभाव से मैंने साक्षात् देवलोक को प्राप्त किया है ।
४३. तुम भी धर्म की आराधना करो, यह मेरी प्रेरणा है । उसको मृत्यु प्राप्त बहुत समय बीत गया लेकिन वह आई नहीं ।
४४. अत: मेरा विचार दृढ हो गया कि शरीर से आत्मा भिन्न नहीं है । राजा की यह वाणी सुनकर केशी स्वामी ने प्रतिबोध देते हुए कहा
४५. राजन् ! कभी तुम सज्जित होकर मन्दिर जाओ । तब शौचालय में स्थित एक व्यक्तिं तुम्हें इस प्रकार कहे
४६. एक बार मेरे पास में आओ और कुछ समय ठहरो । क्या तुम वहां ठहरोगे ? राजाने कहा – कभी नहीं ।
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४७. केशी स्वामी ने नहीं जाने का कारण पूछा । तब राजा ने कहा- वह स्थान अपवित्र है । राजा की वाणी सुनकर प्रतिबोध देते हुए केशी स्वामी ने कहा४८. मेरे मतानुसार तुम्हारी दादी मृत्यु को प्राप्त कर स्वर्ग गई है । चार कारणों को लेकर देव यहां आने के लिए समर्थ नहीं हैं ।
४९-५४. तुम सावधान होकर इन कारणों को सुनो – (१) नवजात देव दैविक भोगों में आसक्त होकर मनुष्य के भोगों को नहीं चाहता है । अत: वह यहां नहीं आता है । (२) नवजात देव जब दैविक भोगों में आसक्त हो जाता है तब उनका मनुष्यों के प्रति स्नेह नष्ट हो जाता है । अत: वह यहां नहीं आता है । (३) नवजात देव दैविकभोगों में गृद्ध होकर मुहूर्त बाद यहां आने का चिंतन करता है पर आने में समर्थ नहीं होता है। उतने काल में उसके सभी प्रियजन मृत्यु को प्राप्त हो जाते है अत: वह यहां आना नहीं चाहता। क्योंकि बिना कारण के कार्य नहीं होता । (४) नवजात देव दैविक भोगों में जब गृद्ध हो जाता है तब वह मनुष्य लोक से कुत्सित गंध का अनुभव करता है । राजन् ! इन चार कारणों से देव यहां आने समर्थ नहीं है ।