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________________ पएसीचरियं २७. कोई मनुष्य तुम्हारी रानी के साथ भोग भोगें तो तुम उसे क्या दंड दोगे? यह सुनकर राजा ने कहा २८-२९. जो मेरी रानी के साथ अभी भोग भोगे तो मैं उसके हाथ, पैर को काट कर, शूली पर चढ़ाकर उसे जीव शून्य कर दूंगा । दूसरा कोई भी दंड नहीं है । राजा को कुकर्म करने वालों को दंड देना चाहिए जिससे प्रजा शिक्षा प्राप्त करें। ३०. राजा की वाणी सुनकर केशी श्रमण ने कहा- राजन् ! यदि वह तुम्हें कहे, मुझे कुछ समय दें। ३१. जिससे मैं घर जाकर शीघ्र ही अपने स्वजनों को यह कह दूं कि मैंने इस प्रकार का कार्य किया है जिससे राजा ने मुझे दंडित किया है। ३२. तुम लोग ऐसा कार्य कभी नहीं करना। यह मेरी मंत्रणा है । राजन् ! क्या तुम उसे घर जाने के लिए समय दोगे ? ३३. केशी स्वामी की वाणी सुनकर राजा ने कहा- मैं कभी भी उसे अपने घर जाने के लिए समय नहीं दूंगा। ३४. उसने मेरा अपराध किया है अत: वह दंडनीय है । राजा का यह प्रथम कर्तव्य है कि वह पापी को सदा दंड दें। ३५. राजा का वचन सुनकर प्रतिबोध देते हुए केशी स्वामी ने कहा- तुम अपने पितामह के प्रिय थे इसमें कोई भी शंका नहीं है। ३६. हमारे मतानुसार वह मृत्यु को प्राप्त कर नरक गया है । वह यहां आना चाहता है पर आने के लिए समर्थ नहीं है। ३७-३८. चार कारणों से नारकी जीव यहां नहीं आता है— (१) नारकी जीवों की पीड़ा को देखकर (२) तत्रस्थ देवों (परमाधार्मिकों) द्वारा दुःख पाने पर (३) जब तक उसके नरकगतिरूप कर्मों का नाश नहीं होता (४) जब तक नरकायुष्य क्षय नहीं होता।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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