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२५. वहां जाकर उसने उस महामुनि को वंदन किया। उसके दर्शन कर वह अपने को धन्य मानने लगा।
२६. तत्पश्चात् प्रवचन सुनने के लिए सारथि चित्र वहीं ठहर गया। केशी महामुनि ने धर्मोपदेश दिया ।
२७. प्रवचन सुनकर सभी मनुष्य अपने घर चले गये। तब चित्र ने समीप आकर महामुनि को निवेदन किया
२८. मैं अनगार धर्म को स्वीकार करने में असमर्थ हूँ। अत: अभी अगार धर्म स्वीकार करता हूँ।
२९. उसकी वाणी को सुनकर उस महामुनि ने कहा- तुम शुभ कार्य में विलंब मत करो।
३०. मुनि के पास में अणुव्रतों को ग्रहण कर सारथि प्रसन्नमन से अपने स्थान पर आ गया।
३१. वह दृढचित्त तथा श्रद्धापूरित मन से गृहीत व्रतों का पालन करने लगा। वह प्रमाद नहीं करता था।
३२. वहीं रहते हुए उसके कई दिन बीत गये । एक दिन जितशत्रु राजा ने उसको बुलाकर कहा
३३. तुम इस भेंट को लेकर श्वेताम्बिका नगरी जाओ और राजा प्रदेशी को यह भेंट दे दो।
३४. तुम राजा प्रदेशी को कुशल पूछना और मेरा कुशल समाचार उसे कहना । यह कहकर उसे ससम्मान विदा कर दिया।
३५. चित्र भेंट लेकर अपने स्थान पर आ गया। तत्पश्चात् वह सज्जित होकर श्रावस्ती की ओर रवाना हो गया।
३६. वह मृगवन उद्यान में केशी स्वामी के स्थान में आकर उन्हें वंदन किया और यह निवेदन किया