________________
कामकला बोली- 'देवी! हम कोई भी रागमंजरी से परिचित नहीं हैं।'
'यह राग मात्र योगियों में ही प्रचलित है। यह अत्यन्त तेजस्वी, चंचल और आवेश उत्पन्न करने वाला राग है। योगी जब इष्ट की आराधना के द्वारा इष्ट को जागृत करना चाहते हैं, तब यह रागिनी उनके प्रयत्न में सहायक बनती है।'
दोनों बहनें अत्यन्त सुन्दर और तेजस्विनी विक्रमा को देखने लगीं। उसके बाद अन्यान्य चर्चा में दो घटिका बीत गई।
रूपमाला राजकुमारी से मिलकर आ पहुंची और सीधे देवी विक्रमा के खण्ड में गईं। विक्रमा उसके चेहरे को देखकर बोली- 'राजकुमारी समझ गई प्रतीत होता है।'
'हां, किन्तु एक शर्त के साथ।' 'कौन-सी शर्त?' मदनमाला ने पूछा। 'कल संध्या से पहले-पहले विक्रमा को वहां भेजना होगा।' 'कोई आपत्ति नहीं। मैं तैयार हूं, रूप!' विक्रमा ने कहा।
'राजकुमारी आपकी कला पर मुग्ध है। वे मात्र आपको सुनने के लिए यहां आने वाली थीं। मैंने कहा कि आपके चाचा भी वहां आयेंगे, यह सुनकर वे बहुत प्रसन्न हुई और बोलीं-तब तो मुझे और अधिक आनन्द आयेगा....किन्तु जब मैंने उन्हें व्यवहार-मर्यादा की बात बताई तब उन्होंने इस एक शर्त पर मेरी बात मान ली।' रूपमाला ने स्पष्ट करते हुए कहा।
संध्या का समय हो गया था। आज के होने वाले समारंभ की पूर्व तैयारी करनी थी-अभी सबको ब्यालू भी करना था।
रूपमाला अपनी दोनों बहनों के साथ तैयारी करने चली गई।
विक्रमरूपी विक्रमा स्नानगृह में जाने के लिए उठी-इतने में ही अग्निवैताल आ पहुंचा। वह बोला- 'मुझे चमत्कार बताने के लिए जाना तो नहीं पड़ेगा?'
___ 'नहीं, किन्तु मध्यरात्रि के पश्चात् मेरे गीत गाने के समय चमत्कार बताना होगा।' विक्रम ने कहा।
अग्निवैताल प्रश्नभरी दृष्टि से विक्रम को देखता रहा।
विक्रम ने कहा- 'आज मैं रागमंजरी नाम की रागिनी गाऊंगी-दो घटिका के पश्चात् तुमको यह करना होगा कि मेरे सामने पड़े जल के पात्र का पानी उछले और उसी में समा जाए-क्या ऐसा हो सकेगा?' ___ 'इसमें ऐसी कौन-सी बात है ? यदि इससे भी महत्त्वपूर्ण चमत्कार दिखाना चाहें, तो एक बड़े चौड़े बर्तन में जलकुंभ रख देना। वह जल से छलाछल भरा रहेगा। मैं उस कुंभ से फव्वारे की भांति जल ऊपर उठाऊंगा और वह सारा जल उस चौड़े पात्र में भरता जाएगा, किन्तु कुंभ पूर्ववत् भरा हुआ ही रहेगा।'
८६ वीर विक्रमादित्य