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'वह तो उसकी प्रियतमा जाने ।'
'तो मेरा मन होता है कि मैं एक चमत्कार घटित करूं ।'
'कैसे ?'
‘राजकन्या को निद्राधीन बना दूं।'
'ठीक है। रूपमाला को आ जाने दे - यदि सुकुमारी यहां आए ही तो तुम अपना चमत्कार घटित कर देना ।' विक्रम ने कहा ।
उसी समय भट्टमात्र भी बाहर से आ गया। विक्रम ने पूछा- 'मित्र ! कहां गए थे?'
'इस महापुरुष की भोजन की व्यवस्था करने ।' अग्निवैताल की ओर देखते हु भट्टमात्र ने कहा ।
'हो गई ?'
'हां, एक छोटी कोठरी मिली है। हलवाई विविध प्रकार की मिठाइयां उसमें रखकर ताला लगाकर चला जाएगा।'
'बहुत अच्छा, इसका पता किसी को नहीं लगना चाहिए। आज सांझ वैताल को साथ लेकर वह कोठरी दिखा देना ।'
अग्निवैताल तत्काल बोल उठा - 'देखने की जरूरत नहीं है। मैं मध्यरात्रि की वेला में वहां पहुंच जाऊंगा।'
भट्टमात्र आश्चर्य भरी दृष्टि से वैताल की ओर देखता रहा। अग्निवैताल ने हंसकर कहा- 'मैं मनुष्य नहीं हूं, यह याद रखोगे तो कोई भी आश्चर्य नहीं होगा ।' भट्टमा ने वैताल का हाथ पकड़कर कहा- 'हम निरन्तर साथ रहते हैं, इसलिए भूल जाते हैं ।'
उसी समय मदनमाला और कामकला ने खण्ड में प्रवेश किया ।
भट्टमात्र और अग्निवैताल खण्ड से बाहर आ गए।
मदनमाला ने एक आसन पर बैठते हुए कहा- 'आज के कार्यक्रम के विषय में क्या सोचा है ?'
‘देवी रूपमाला का मृदंगवादक कैसा है ?' विक्रमा ने पूछा ।
'निष्णात है ।'
'तो अंतिम गीत मैं गाऊंगी।' विक्रमा ने कहा ।
'पश्चिम रात्रि में ?'
'हां, आपने यह कार्यक्रम मेरे सम्मान में आयोजित किया है, इसलिए तीनों बहनों का कार्य पूरा होने के पश्चात् तुम मुझे रागमंजरी राग गाने के लिए कहना । भैरव परिवार की यह एक दिव्य रागिनी है - उसके प्रभाव से एक पात्र में भरा हुआ जल उछलने लगेगा । '
वीर विक्रमादित्य ८५