SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्यास्त से पूर्व राजकुमारी के यहां सन्देश देकर दासी लौट आयी। उसने रूपमाला से कहा- 'देवी! राजकुमारीजी ने आज रात्रि में स्वयं यहां उपस्थित होने की इच्छा व्यक्त की है। राजकुमारीजी दो परिचारिकाओं को साथ लेकर यहां आएंगी और नृत्य-संगीत के कार्यक्रम को देखेंगी।' राजकुमारी जी का यह सन्देश सुनकर रूपमाला आश्चर्यचकित रह गई। वह स्तब्ध हो गई, मानो कि उस पर कोई आकाश टूट पड़ा हो। एक नर्तकी के भवन में राजकुमारी का आगमन । महाराज यदि यह बात जानेंगे, तो क्या दशा होगी? या तो मुझे देश से निकाला जाएगा या सारी सम्पत्ति का अपहरण कर लिया जाएगा....और आज इस कार्यक्रम में राजकुमारी के चाचा आर्य जितवाहन भी तो आएंगे। अब क्या किया जाए? दूसरे खण्ड में दोनों बहनें और विक्रमा बात कर रही थीं। रूपमाला वहां गई और मदनमाला को सामने देखकर बोली- 'मदन! बहुत बड़ी विपत्ति आ गई है।' 'क्या हुआ, बहन?' 'मदन! आज राजकुमारी ने स्वयं यहां आकर नृत्य-संगीत देखने की इच्छा व्यक्त की है। राजकुमार जितवाहन भी आएंगे। वे राजकुमारी को यहां देखेंगे तो क्या दशा होगी?' विक्रमा बोली- 'राजकुमारी का संगीत के प्रति अत्यन्त लगाव है, किन्तु भावना और व्यवहार के मार्ग निराले हैं। तुम अभी राजकुमारी के यहां जाओ और उन्हें समझाओ। यदि राजकुमारी न समझें तो हम सब वहीं चलेंगी।' विक्रमा की बात रूपमाला को उचित लगी। वह तत्काल तैयार होकर राजकुमारी के एकान्त भवन की ओर चल पड़ी। रूपमाला के जाने के पश्चात् विक्रमा रूपी विक्रम अपने खण्ड में आये। अग्निवैताल भी वहां आ पहुंचा। वह बोला-'मित्र! जो राजकन्या एक नर्तकी के भवन में आना चाहती है, उसको प्राप्त करने के लिए इतना श्रम क्यों करना चाहिए?' _ 'वैताल! वह नर्तकी के भवन में पवित्र भावना से आ रही है। यदि वह मलिन मन से आती तो निन्द्य मानी जाती। किन्तु राजकन्या का मन अत्यन्त निर्मल और निर्दोष है।' 'यदि राजकुमारी यहां आने का आग्रह करेगी तो...' 'संभव है, वह समझ जाएगी, अन्यथा हम सब वहां चलेंगें' 'रूपमाला का प्रियतम....?' ८४ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy