________________
'ओह!' कहकर रूपमाला ने विक्रमा का हाथ दबाते हुए कहा-'किन्तु कला की साधना में तो मैं बहुत छोटी हं।'
'मैं कोई बहाना नहीं मानूंगी।' 'अच्छा, अब मेरी एक बात माननी पड़ेगी।' 'एक नहीं, अनेक । बोलो।' विक्रमा ने मृदु हास्य के साथ कहा। 'कल हम चारों बहनें मिलकर नृत्य-संगीत का आनन्द मनाएंगी।' 'भवन में?' 'हां।' 'किसी विशिष्ट अतिथि को आमत्रंण देना है ?' बीच में ही मदनमाला बोल पड़ी-'हां, संभव है, इसके प्रीतम को....।' रूप ने लज्जा-भरे स्वरों में कहा-'हां, इनके सिवाय दूसरा कौन है?' विक्रमा ने विनोद से पूछा- 'वह भाग्यशाली कौन है?' "महाराजा के छोटे भाई आर्य जितवाहन।' 'तुम्हारा चुनाव श्रेष्ठ है-जितवाहन है तो वफादार ?'
'हां, उसके दो पत्नियां हैं-किन्तु वह अत्यन्त सरल हृदय है। सप्ताह में एक रात आता है।'
_ 'बहुत अच्छा, उनको अवश्य ही निमंत्रित करना-किन्तु उनको देखकर यदि मैं मुग्ध बन गई तो?' विक्रमा ने कहा।
'वे इतने कच्चे नहीं हैं-फिर भी तुम्हारी इच्छा होगी तो मैं उन्हें उपहार के रूप में दे दूंगी।' कहती हुई रूपमाला हंस पड़ी।
‘ऐसी वस्तु उपहार के रूप में नहीं ली जाती।' 'तो?'
'क्षत्रिय लोग उपहार नहीं लेते। वे अपहरण करने में गौरव समझते हैं।' विक्रमा ने विनोद को आगे बढ़ाया।
रूपा बोली- 'देवी! तुम्हारे कौन हैं?'
'मेरी बात ही मत करो-पत्ते बिना की बेल जैसी मेरी दशा है। मेरे प्रति मुग्ध तो अनेक होते हैं-किन्तु मेरा मन किसी के प्रति आकृष्ट नहीं होता।' विक्रमा ने कहा।
रूपमाला ने कामकला की ओर देखकर कहा-'तुम तो जानती ही होगी?' ___ "विक्रमा बहुत चालाक है। इसके मन को जानना सरल नहीं है।' कामकला ने कहा।
इस प्रकार चर्चा करते-करते सब अपने-अपने शयनकक्ष की ओर चल पड़ीं।
वीर विक्रमादित्य