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राजकुमारी बोली- 'तब तो देवी विक्रमा! आप अपनी महान् साधना का परिचय कराएं।'
विक्रमा ने कहा- 'पटयोग की आराधना करने में मुझे कोई बाधा नहीं है, किन्तु इस गीत के गाने के पश्चात मैं दूसरा कोई भी गीत नहीं गा सकूँगी। फिर आपको ही अपनी कला का परिचय देना होगा।'
राजकुमारी ने मुस्कराते हुए कहा- 'स्वीकार है।'
तत्काल विक्रमा ने मृदंगवादिका से कहा- 'देवी ! मेरे सामने पांच हाथ की दूरी पर मृदंग के युगल को रख दो.....मुझे केवल तंबूरा दे दो....दूसरे वाद्यों की कोई आवश्यकता नहीं है।'
मृदंगवादिका ने दोनों मृदंग यथास्थान रख दिए और वे सही रूप में नियोजित हैं या नहीं, इसकी जांच कर ली। फिर एक तंबूरा विक्रमा के सामने रख दिया।
विक्रमा ने तंबूरा हाथ में लिया, तारों को सुनियोजित किया-एक तार कुछ ऊंचा था, उसे ठीक कर दिया।
अदृश्य रूप में वैताल मृदंग के पास बैठ गया।
विक्रमा ने राजकुमारी की ओर देखा। राजकुमारी एकटक विक्रमा को देख रही थी। राजकुमारी के नयनों में क्रीड़ा करने वाली माधुरी को देखकर विक्रमादित्य का हृदय मुग्ध बन गया था। उसने मुस्कराकर राजकुमारी को प्रसन्न किया और आंखें बन्द कर 'पटयोग' की आराधना प्रारम्भ की।
वाद्यमंडली, राजकुमारी, मंजरी देवी, तीनों बहनें और सभी दास-दासियां अवाक होकर विक्रमा की ओर देख रही थीं।
मंजरी देवी और राजकुमारी ने 'पटयोग' राग का स्वरूप कभी नहीं जाना था। मृदंग स्वयं ताल दे, यह न माने जाने वाला आश्चर्य था।
किन्तु राग के प्रभाव से अनेक आश्चर्य घटित होते हैं, यह सबको ज्ञात था।
राग के स्वरूप को आत्मसात् करने वाले अनेक गायकों ने राग के प्रभावोत्पादक चमत्कार दिखाए हैं। राग से अग्नि प्रकट होती है, दीपमालिका जल उठती है, जलस्तंभन होता है। राग के प्रभाव से ज्वर, शिरःशूल, सर्पविष आदि दूर होते हैं। राग से अनिद्रा का रोग मिटता है-ये सारी बातें अज्ञात नहीं हैं। मंजरी देवी ने यह भी सुना था कि केवल कलियों से गूंथी हुई माला राग के प्रभाव से तत्काल खिल उठती है, किन्तु इन सभी चमत्कारों से अधिक चमत्कारिक था राग के प्रभाव से मृदंगों का स्वयं बज उठना। इसीलिए सभी की दृष्टि विक्रमा और दूर पड़े मृदंगों पर स्थिर थी।
वीर विक्रमादित्य ७७