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________________ दोनों बहनें सामान्य नर्तकियां नहीं थीं-उनकी भाव-भंगिमा, हास्य का अद्भुत आकर्षण और अंगों के लचीलेपन ने अवंती के युवकों के हृदय को जीत लिया था-नृत्य देखकर कुछ अपनी ज़वानी को याद करते और प्रौढ़ मस्त बन जाते थे। दोनों बहनों ने अपूर्व भावभंगिमा से नृत्य को आगे बढ़ाया। विक्रमादित्य स्त्रीवेश में थे-फिर भी उनका पुरुष भाव थिरकने लगा। राजकुमारी भी अत्यन्त प्रसन्न हुई। मंजरी देवी को ज्ञात हो गया कि रूपमाला की दोनों बहनें केवल रूपवती ही नहीं हैं, नृत्यांगनाओं में भी श्रेष्ठ हैं। नृत्य में एक भी दोष प्रतीत नहीं हो रहा था-भाव-भंगिमा भी ताल का स्वरूप ले लेती थी। और मदनमाला जब विरह-व्यथा व्यक्त करने लगी तब राजकुमारी के मन में यह विचार उमड़ पड़ा कि क्या नारी के प्राणों में पुरुष के वियोग का इतना असर होता है ? क्या नारी इतनी कोमल और मधुर होती है ? और जब कामकला ने विरह में तिरोहित आनन्द को व्यक्त करने वाला अभिनय प्रारम्भ किया तब वाद्यमंडली रंग में आ गई और मंजरी देवी भी बार-बार 'धन्य है', 'धन्य है' कहने लगी। रूपमाला भी अपनी बहनों की उपलब्धि पर मंत्रमुग्ध हो गई। दूसरा प्रहर पूरा हुआ। नृत्य भी सम्पन्न हो गया। राजकुमारी ने दोनों नर्तकियों को धन्यवाद दिया। मंजरी देवी ने भी धन्यवाद दिया। दोनों बहनें राजकुमारी को नमन कर अपने-अपने आसन पर बैठ गईं। मंजरी देवी ने विक्रमा की ओर दृष्टि कर कहा- 'देवी! अब आप अपनी कला का रसपान कराएं।' विक्रमा खड़ी हुई और सबको नमन कर भूमि पर बिछी हुई एक गद्दी पर बैठ गई। ___मदनमाला और कामकला के साथ यहां आने से पूर्व विक्रमा ने कार्यक्रम की चर्चा कर ली थी। इसी चर्चा को लक्ष्य में रखकर मदनमाला ने मंजरी देवी से कहा-'आचार्या! देवी विक्रमा ने 'पटयोग' नाम की दिव्य और अपरिचित राग की अपूर्व साधना की है। यह राग जब देवी विक्रमा गाती हैं तब उनके समक्ष पड़े हुए मृदंग स्वत: बजने लगते हैं और ताल देते हैं।' ७६ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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