________________
रूपमाला को देखकर विक्रमा के रूप में विक्रमादित्य ने पूछा- 'क्यों, कैसे आना हो गया ?'
'ओह! आपके समाचार सुनकर राजकुमारी अत्यन्त प्रसन्न हुई और सबको महल में आने के लिए निमंत्रण दिया है।'
देवी विक्रमा तो यही चाहती थी। वह बोली- 'हमारी जिज्ञासा तृप्त होगी। हम प्रसन्नता से वहां पहुचेंगी और राजकन्या को खुश करेंगी - किन्तु मेरे दोनों साथी.....।'
‘यही तो कठिनाई है ! किसी भी पुरुष को साथ में नहीं ले जाया जा सकता। राजकन्या के यहां उत्तम वाद्यमंडली है।'
'क्या उसमें कोई पुरुष नहीं है ? ' 'नहीं, उसमें सभी स्त्रियां ही हैं । '
'मृदंग बजाने के लिए ......
'स्त्री ही है - वह मृदंग वादन में इतनी निपुण है कि वह बड़े-बड़े मृदंगवादकों को भी पराजित कर देती है।'
'तब तो बड़ा आनन्द आएगा।' विक्रमा ने कहा ।
फिर अनेक प्रकार की बातें कर रूपमाला ने तीनों को शयनकक्ष में भेज दिया ।
अग्निवैताल अदृश्य रहकर सारी बातें सुन रहा था और भट्टमात्र कभी का निद्राधीन हो चुका था।
शयन की व्यवस्था दो खंडों में की गई थी। एक खंड में दोनों बहनों के लिए दो पलंग बिछाए गए थे और एक खंड में केवल विक्रमा के लिए व्यवस्था की गई थी।
शयनकक्ष में जाते-जाते विक्रमा ने कामकला से कहा- 'अभी तो हम विश्राम करते हैं, फिर राजकुमारी के समक्ष हमें कौन-सा कार्यक्रम प्रस्तुत करना है, उस विषय में विचारणा करेंगी ।'
'ठीक है।' कहकर दोनों बहनें अपने शयनकक्ष में गईं और देवी विक्रमा अपने खंड में जाकर शय्या पर बैठ गई ।
भवन की परिचारिकाओं ने जलपान आदि की व्यवस्था कर रखी थी। एक परिचारिका पगचंपी करने के लिए आयी ।
विक्रमा ने कहा- 'मुझे पगचंपी कराने की आदत नहीं है। प्रवास की थकान है, इसलिए नींद आ जाएगी, तू जा । '
दासी नमन कर चली गई। विक्रमा ने अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया और सो गई ।
७२ वीर विक्रमादित्य