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________________ 'हां, देवी! समझदार व्यक्ति की असमझदारी ! हमारी राजकुमारी के मन पुरुष- जाति के प्रति अत्यन्त घृणा है और नौजवान के प्रति तो अत्यधिक तिरस्कार की भावना है। जब कभी कोई नवयुवक पुरुष उसके भवन में प्रवेश करता है तो वहीं उसका वध कर दिया जाता है। इसीलिए हमारे महाराज ने उसके लिए अलग महल की व्यवस्था की है।' 'तब तो राजकुमारी कभी भवन के बाहर निकलती ही नहीं होगी ?' विक्रमा ने प्रश्न किया । 'बाहर तो आती है - माता-पिता से मिलने जाती है। कभी-कभी राजसभा जाती है । उस समय वह शान्त और स्वस्थ रहती है, किन्तु यदि कोई युवक उसके साथ विवाह करने की अभिलाषा व्यक्त करता है तो तत्काल उसके हृदय में रोष उत्पन्न हो जाता है और तब उसका पागलपन उभर आता है।' रूपमाला ने कहा । 'राजकुमारी सुन्दर है, स्वस्थ है, उत्तम विचारवाली है, फिर भी पुरुष जाति के प्रति इतना द्वेष रखती है, यह एक आश्चर्य ही है ।' विक्रमा ने कहा । देवी विक्रमा! यह एक आश्चर्य तो है ही - परन्तु इसकी पृष्ठभूमि में जो कारण है, वह विचित्र है । सुना जाता है कि राजकुमारी को अपने पूर्वभवों की स्मृति हुई और तब से पुरुष-जाति के प्रति घृणा जाग गई ।' मदनमाला कुछ कहे उससे पूर्व ही एक परिचारिका खंड में प्रविष्ट हुई और रूपमाला के समक्ष जाकर बोली- 'देवी! राजकुमारीजी की दो दासियां आ चुकी हैं।' 'रथ तैयार है ?' 'हां, देवी ! ' रूपमाला ने अपनी बहनों की ओर देखकर कहा 'आज भारी विपत्ति आ जाएगी - यदि राजकन्या रोष से भर गई तो ।' विक्रमा तत्काल बोली – ‘देवी! आप चिन्ता न करें - राजकुमारी से कह देना कि अवंती नगरी से दो श्रेष्ठ नर्तकियां और एक गायिका अतिथि-रूप में आ गई थीं, इसलिए उनके आतिथ्य के कारण विलम्ब हो गया।' ऐसा कहूंगी तो दूसरी विपत्ति आ जाएगी।' विक्रमा रूपमाला की ओर देखने लगी । रूपमाला बोली-‘यदि मैं आप सबके आगमन की बात कहूंगी तो राजकुमारी आप सबको वहां बुला भेजेंगी और फिर वहां सबको जाना ही पड़ेगा ।' 'हम अवश्य ही वहां चलेंगी और राजकुमारी का मन प्रसन्न करने का प्रयत्न करेंगी।' कामकला ने कहा । ७० वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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