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भवन के वृद्ध द्वारपाल ने मदनमाला और कामकला को पहचान लियाउसने बहुत प्रेम से स्वागत किया। उसने एक दासी को भेजकर रूपमाला को सूचना दी कि अवंती नगरी से मदनमाला और कामकला-दोनों आयी हैं।
सात वर्ष पश्चात् बहनें आयी हैं, यह सुनकर रूपमाला हर्षित हो उठी। वह बहनों का स्वागत करने तत्काल बाहर आयी।
अत्यन्त प्रसन्नता से वह दोनों बहनों के गले मिली। साथ में नवयौवना को देखकर वह स्तम्भित रह गई। उसने कामकला की ओर प्रश्नभरी दृष्टि से देखा।
कामकला ने दृष्टि में प्रतिबिम्बित प्रश्न को समझते हुए कहा- 'बहन! क्या तुमने अवंती की प्रख्यात गायिका देवी विक्रमा का नाम सुना है? यही देवी विक्रमा हैं....यह हमारी प्रिय सखी हैं। हमारे आग्रह के कारण यह स्वयं यहां आयी हैं।'
_ 'मैं धन्य हूं'-कहती हुई रूपमाला ने विक्रमा को छाती से लगा लिया।
फिर रूपमाला ने अतिथियों के लिए भवन के ऊपरी खंड में दो कक्षों में व्यवस्था करवा दी।
___ भोजन का समय हो चुका था, इसलिए सभी ने साथ में बैठकर भोजन किया।
फिर रूपमाला ने अग्निवैताल, देवी विक्रमा और भट्टमात्र को विश्राम करने का आग्रह किया।
सात वर्षों के पश्चात् तीनों बहनें मिली थीं, इसलिए तीनों एक साथ बैठी और अनेक प्रकार की बातों में तन्मय हो गईं।
इस प्रकार बातों-बातों में सांझ हो गई। विक्रमा भी तीनों बहनों के पास आयी। सूर्यास्त की जब आवाज लगी तब रूपमाला चौंक पड़ी और खड़ी होकर बोली-'अरे, आज तो मैं भूल ही गई।'
'क्या, बहन?' मदनमाला ने प्रश्न किया। 'राजकुमारी सुकुमारी के यहां जाने का समय बीत गया।' 'इसमें इतनी व्याकुल बनने की क्या बात है? कल चली जाना।'
रूपमाला ने मुस्कराते हुए कहा-'काम! प्रतीत होता है कि हमारी राजकुमारी का वृत्तान्त तुमने सुना नहीं है?'
'क्या कोई पागलपन है?'
'नहीं-नहीं....वह अत्यन्त सुन्दर है, बुद्धिमती है। नृत्य-संगीत में बहुत रस लेती है....उसके विचार भी उत्तम हैं...उसका स्वभाव मृदु है....किन्तु उसमें एक पागलपन ऐसा आ गया है, जिसका निवारण अत्यन्त दुष्कर हो रहा है।'
'पागलपन ?' विक्रमा ने प्रश्न किया।
वीर विक्रमादित्य ६६