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________________ - 'कामकला की बात उचित है, किन्तु तीनों को स्त्री वेश धारण करने की आवश्यकता नहीं है। मेरे पास रूप-परिवर्तन करने की दिव्य गुटिका है। उसके प्रयोग से मैं स्त्री-रूप में आ जाऊंगा..... मेरी आवाज में कोमलता आ जाएगी.... मेरा महान् मित्र.....' कहकर विक्रमादित्य ने अग्निवैताल की ओर देखा । अग्निवैताल ने हंसकर कहा - 'महाराज ! मैं भी नारीवेश धारण करूंगा।' 'फिर नृत्य करना पड़े तो ?' महामंत्रीने प्रश्न किया । 'मैं वीणा या मृदंग बजा सकूंगा।' विक्रम ने हंसते हुए कहा- 'नहीं, स्त्री वेश की जरूरत नहीं है। तुम मेरे मृदंगवादक बन जाना और भट्टमात्र हमारी मंडली के व्यवस्थापक होंगे।' सभी को यह योजना पसन्द आयी । अग्निवैताल ने स्मृतिमात्र से मृदंगवादक का सुन्दर रूप बना डाला। दोनों नर्तकियों ने पुरुष-वेश उतारकर स्त्री - वेश धारण कर लिया। भट्टमात्र को कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं रही। विक्रमादित्य ने देवकीर्ति द्वारा प्राप्त दिव्य गुटिका का प्रयोग किया और नवयौवना रूपसुन्दरी का रूप धारण कर लिया और कहा - 'अब आप सब मुझे देवी विक्रमा के नाम से संबोधित करेंगे।' विक्रमादित्य के यौवन और रूप से उभरता हुआ नारी रूप देखकर दोनों नर्तकियां आश्चर्य से अवाक् रह गईं । - अग्निवैताल ने कहा – 'महाराज ! आपने तो बहुत खतरा उठाया है....' 'कैसे ?' 'आपको देखकर अनेक पुरुष मुग्ध हो जाएंगे - आपकी आवाज भी मृदु और मधुर बन गई है।' 'इसमें खतरा क्या है ? ' भट्टमात्र ने हंसते-हंसते कहा- 'कोई आपका अपहरण कर ले तो ?' सभी हंस पड़े, फिर अपने-अपने अश्व पर बैठकर नगरी की ओर चल पड़े। रूपमाला का भवन नगरी के पश्चिम की ओर था। पांचों अश्वारोही रूपमाला के भवन पर आ पहुंचे, तब दिन का दूसरा प्रहर चल रहा था। अश्व पर बैठी हुई तीनों सुन्दरियों को देकर पथिक अवाक् रह जाते थे। कामकला और मदनमाला अपनी बहन रूपमाला के घर सात वर्ष पूर्व आयी थीं। दोनों बहनें इस नगर से सर्वथा परिचित थीं, इसलिए सभी बिना पूछताछ किए सीधे रूपमाला के घर पहुंच गए थे। ६८ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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