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________________ पांचों अश्व जब मुख्य द्वार से कुछ ही फासले पर थे तब देखा कि एक झरोखे में दो बिल्लियां विचित्र आवाज कर रही हैं। भट्टमात्र बोला- 'बिल्लियां ?' कामकला बोली- 'महामंत्री ! ये बिल्लियां विचित्र होती हैं...... इस प्रकार की हरकतों से वे रक्षिकाओं को सावधान कर रही हैं और पुरुषों के आगमन की सूचना राजकन्या तक पहुंचा रही हैं। यह समाचार पाकर राजकन्या से मौत का पैगाम आ जाता है । ' महामंत्री ने विक्रमादित्य की ओर दृष्टि कर कहा - 'महाराज ! बिना सोचेसमझे हमें साहस नहीं करना चाहिए। पहले हम वस्त्र- परिवर्तन कर कुछ आश्वस्त हो जाएं, फिर रूपमाला से सारा विवरण ज्ञात कर, कोई योजनाबद्ध कार्य करें ।' दोनों नर्तकियों ने कहा- 'हां, कृपानाथ ! यह अधिक उचित होगा ।' तत्काल सभी अश्वारोही दूसरी दिशा की ओर चल पड़े। १४. रूपमाला के भवन में मदनमाला और कामकला के मन में यह आश्चर्य बढ़ता ही गया कि बीस दिन का प्रवास एक रात में कैसे पूरा हो गया। अग्निवैताल ने योगीराज के बहाने एक बात कही थी, फिर भी दोनों बहनों का मन शांत नहीं हो सका था और उन्होंने स्त्रीस्वभाव की उपेक्षा करके भी कुछ भी नहीं कहा। राजकुमारी सुकुमारी के एकान्त प्रासाद से कुछ ही दूरी पर एक उपवन था। वहां पांचों प्रवासी अपने-अपने अश्वों सहित आ पहुंचे। I आस-पास में वृक्षावलि बहुत सुन्दर लग रही थी । वातावरण अत्यन्त मनोरम था। आठ-दस वृक्षों के निकुंज में भट्टमात्र ने अपनी चादर बिछाई । विक्रमादित्य ने कहा- 'मित्र ! हमें यहां समय क्यों गंवाना चाहिए ? मदन और काम- दोनों वस्त्र - परिवर्तन कर लें, तब हम नगरी में चलें ।' कामकला ने कहा–‘कृपानाथ ! आप क्षमा करें तो मैं एक सूचना देना चाहती हूं।' विक्रमादित्य ने कामकला की ओर प्रसन्न दृष्टि से देखते हुए कहा - 'नि:संकोचपूर्वक तुम सूचना करो। भाई के पास बहन को किसी भी प्रकार का संकोच नहीं करना चाहिए ।' ‘महाराज! रूपमाला महाराज शालिवाहन की प्रमुख नर्तकी है और वह प्रतिदिन राजकुमारी के पास जाती है। इसलिए आप तीनों पुरुष यदि स्त्रीवेश धारण करें तो बहुत अच्छा रहेगा ।' वीर विक्रमादित्य ६७
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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