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________________ बहुत बार ऐसा होता है कि मनुष्य की अनिच्छा ही इच्छा का रूप धारण कर लेती है। जब तक विक्रम ने सुकुमारी का चित्र नहीं देखा था, तब तक मन में एक कुतूहल मात्र जागा था....किन्तु देवकीर्ति से जब चित्र प्राप्त हो गया, पत्नी की सहमति मिल गई और चित्र को बार-बार देखने का अवसर मिला, तब सुकुमारी को प्राप्त करने की भावना बलवती होती गई। पति का मनोमन्थन पत्नी से अनजाना नहीं रह सकता। कमला निपुण थी। उसने स्वामी के चेहरे को देखकर जान लिया था कि वे सुकुमारी के प्रति आकृष्ट हुए हैं। उसका स्वभाव अति प्रेमार्द्र और पतिपरायण था, इसीलिए वह सुकुमारी के उद्धार की प्रेरणा बार-बार देती रही। इन तीन दिनों के बीच भट्टमात्र ने पूर्ण विचार-विमर्श कर सुकुमारी तक पहुंचने की एक योजना बना ली और उस योजना के अनुरूप छान-बीन भी कर ली। चौथे दिन विक्रम के धीरज का बांध टूट गया। उन्होंने महामंत्री को बुलाने के लिए एक सेवक भेजा। महामंत्री भट्टमात्र राजभवन के बैठकखंड में आए, तब महाराज विक्रमादित्य प्रात:कर्म से निवृत्त हो उनकी प्रतीक्षा में बैठे थे। भट्टमात्र को देखते ही वे बोले'क्या योजना मन में ही रहेगी या प्रकट भी हो सकेगी?' ___ 'योजना तैयार है, किन्तु नरद्वेषिणी सुकुमारी का विचार आते ही मन में एक तूफान उठता है कि यह जोखिम क्यों उठाई जाए?' विक्रमादित्य हंसकर बोले- 'मनुष्य का जीवन अनेक जोखिमों से भरा पड़ा है। इस राजभवन में मैं प्रत्येक दृष्टि से सुखी हूं....परन्तु कब कौन मुझे विष दे दे, यह किसी को ज्ञात नहीं। जोखिम के बिना जीवन का मजा भी क्या है? आप अपनी योजना बताएं।' ___ 'महाराज ! राजकन्या नृत्य और संगीत में रस लेती है। अवंती नगरी की दो विख्यात नर्तकियां-मदनमाला और कामकला दक्षिण भारत की हैं। महाराज शालिवाहन की प्रिय नर्तकी रूपमाला की ये दोनों बहनें हैं। रूपमाला तीनों बहनों में सबसे बड़ी है और वह राजकनया को संगीत और नृत्य सिखाती है। महाराज शालिवाहन की उस पर पूर्ण कृपा है और उसका अपना वर्चस्व भी है। हम यहां से मदनमाला और कामकला-दोनों नर्तकियों को साथ लेकर प्रतिष्ठानपुर चलें तो राजकन्या से मिलने का सुयोग मिल सकता है।' विक्रमादित्य मौन रहे.....विचारमग्न हो गए। भट्टमात्र ने कहा-'आपने भी संगीत की साधना की है। शास्त्र कहते हैं कि नारी और मृग नाद से वश में हो जाते हैं।' ६२ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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