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मध्याह्न तक सारा नगर राजशून्य-सा हो गया और उद्यान जन-संकुलसा बन गया। सभी पौरजन राजर्षि भर्तृहरि की शरण में आ गए।
मालवपति अपने परिवार के साथ राजर्षि के चरणों में उपस्थित हुए। सभी ने राजर्षि की चरणरज अपने मस्तक पर चढ़ाई। राजर्षि ने सबको आशीर्वाद दिया।
महामंत्री भट्टमात्र ने कहा- 'महात्मन्! आपके चरण-स्पर्श से आज यह धरती पुण्यमयी बनी है। अब आप राजभवन में पधारने की कृपा करें।'
_ 'महात्मन् ! मेरी भी यही विनम्र प्रार्थना है। आप इसे स्वीकार करें।' विक्रमादित्य ने गद्गद स्वरों में कहा।
भर्तृहरि ने प्रसन्न दृष्टि से विक्रम की ओर देखते हुए कहा- 'राजन्! मुझे यहीं आनन्द है-त्यागी-तपस्वी व्यक्तियों के लिए राजभवन उचित नहीं होता।'
विक्रमादित्य ने बहुत आग्रह किया, तब राजर्षि बोले- 'मैं कल माधुकरी भिक्षा लेने राजभवन आऊंगा।'
आधी रात तक लोग उद्यान में डटे रहे।
रात्रि के अंतिम प्रहर में महाराज विक्रमादित्य राजभवन की ओर प्रस्थित हुए।
प्रात:काल हुआ।
राजभवन में राजर्षि के आगमन की तैयारियां होने लगीं। महारानी कमलावती अत्यन्त व्यस्त थीं।
लोगों का प्रवाह राजभवन की ओर उमड़ रहा था, किन्तु महात्मा भर्तृहरि को मार्ग में आने में कोई कठिनाई या अवरोध न हो, इसलिए राज्य की ओर से पूरी व्यवस्था की गई थी।
___ माधुकरी के लिए राजर्षि उद्यान से चले। मार्ग में नागरिकों का प्रणाम स्वीकार करते-करते वे राजभवन की सोपान श्रेणी के पास पहुंचें
लोगों की भीड़ अपार थी। महाराज विक्रमादित्य और महामंत्री सोपान श्रेणी के पास खड़े रह गए। महाप्रतिहार महात्मा भर्तृहरि को राजभवन में ले गए।
उस समय ऊपर की मंजिल में महारानी कमलावती स्नान कर रही थीं। एक दासी ने महात्मा भर्तृहरि के आगमन की सूचना दी। यह सुनकर महारानी एक भीगे वस्त्र में खड़ी हो गईं।
कुछेक नागरिक राजभवन के भीतर प्रवेश पाने के लिए प्रयत्न कर रहे थे। महाप्रतिहार उन्हें वहीं रोकने की व्यवस्था में जुट गए।
महात्मा भर्तृहरि शान्त भाव से ऊपरी मंजिल की सोपान श्रेणी चढ़ने लगे। ५२ वीर विक्रमादित्य