________________
बीच में कमला बोल उठी- 'मेरे मन में कोई भय नहीं है। श्रीकृष्ण के कितनी रानियां थीं, फिर भी उनके सांसारिक जीवन में कहीं विसंवाद नहीं था।'
'फिर भी....'
"फिर भी कुछ नहीं-मेरे और आपके मन का जो लगाव हो चुका है, उसको विधाता भी नहीं तोड़ सकते। विश्वास ही स्त्री का सच्चा धन है, पौस्व है।' कमला ने कहा।
इस प्रकार आनन्द, प्रेम और भावनाओं के चार मास व्यतीत हो गए। विक्रमादित्य ऐसी व्यवस्था करने लगे, जिससे प्रजा को ज्यादा-से-ज्यादा सुखसुविधा उपलब्ध हो सके।
___ विक्रम की यह भावना थी कि मालव देश में कोई भी व्यक्ति दु:खी न रहे। उन्होंने मंत्रियों से मंत्रणा कर राज्यकर्मचारियों को यह निर्देश दिया कि राज्यव्यवस्था की ओर से प्रजा को तनिक भी दु:ख नहीं होना चाहिए। प्रजा के धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक रीति-रिवाजों में राज्य का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
विक्रमादित्य ने कर-भार कम कर दिया तथा व्यापारी और किसानों को विशेष रियायत देकर उनका मार्ग प्रशस्त किया।
इस प्रकार उदार राजनीति के कारण विक्रमादित्य के प्रति प्रजा का सद्भाव शतगुणित हो गया।
इतने समय तक शिकायत करने वाले प्रजाजनों को राजसभा में ही उपस्थित होना पड़ता था। वे वहां फरियाद करने में हिचकिचाते थे। महाराज विक्रमादित्य ने इसमें संशोधन कर शिकायत करने वाला कोई भी व्यक्ति राजभवन में आ सकता है, ऐसी घोषणा करवाई।
इस प्रकार विक्रमादित्य के राज्यकाल का प्रारम्भ लोगों के आनन्द और मंगल भावना से उज्ज्वल हो रहा था।
__ और एक दिन अवंती की जनता के जय-जयकार से सारा गगनमंडल ध्वनित हो उठा।
महात्मा भर्तृहरि नगरी के एक उद्यान में आ गए थे।
यह समाचार सुनकर नगरी की पूरी जनता अपने त्यागी-वैरागी राजा के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ी।
महाराज विक्रमादित्य को राजर्षि के आगमन की सूचना मिली। वे अपने परिवार, मंत्रिमंडल, सामंत, सुभट और सेनानायकों से परिवृत होकर नगर के बाहर स्थित उद्यान की ओर राजर्षि के दर्शनार्थ उपस्थित हुए।
वीर विक्रमादित्य ५१