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लक्ष्मीपुर के महामंत्री, राजपुरोहित और अधीनस्थ राजा तत्काल अवन्ती आ पहुंचे।
अत्यन्त उल्लास के साथ वाग्दान विधि सम्पन्न हुई। विवाह के लिए वैशाख शुक्ला दसमी का दिन निर्धारित हुआ।
लक्ष्मीपुर के महामंत्री और अन्य व्यक्तियों का उचित सम्मान कर उन्हें विदाई दी।
तत्काल विवाह की तैयारी प्रारम्भ हो गई।
और शुभ मुहूर्त तथा मंगलमय वेला में महाराज विक्रमादित्य ने अपनी साज-सज्जा के साथ लक्ष्मीपुर की ओर प्रस्थान किया।
लक्ष्मीपुर की जनता अपनी प्रिय राजकुमारी के भावी पति मालवनाथ विक्रमादित्य को देखने के लिए उत्सुक हो रही थी।
मालवपति का स्वागत करने के लिए राज्य की ओर से अपूर्व तैयारी की गई थी। जनता भी अधिक उत्साह से स्वागत में सम्मिलित हुई।
जो राजा अपनी प्रजा का प्रेम संपादित करता है, उस राजा के प्रत्येक प्रसंग को जनता अपना प्रसंग मानकर चलती है; क्योंकि राजा स्वयं प्रजा के सुख में सुख और दुःख में दु:ख अनुभव करता है।
और जो राजा जुल्म, भय या अधिकार बताकर जनता पर शासन करता है, उस राजा के प्रति प्रजा के अन्त:करण में किसी भी प्रकार का सद्भाव नहीं होता। ___ महाराज विक्रमादित्य अपनी बारात लेकर लक्ष्मीपुर आ पहुंचे। नागरिकों ने अभूतपूर्व स्वागत किया।
महाराज वैरीसिंह और महारानी पद्मावती अपने दामाद को देखकर परम प्रसन्न हुए। ऐसा प्रतापी, युवा और पराक्रमी दामाद पुण्य योग से ही प्राप्त होता है। - यथासमय विधिवत् विवाह की रस्म पूरी हुई।
महाराजा विक्रमादित्य की ओर से पूरी नगरी को भोजन के लिए निमंत्रित किया गया। दोनों पक्षों ने बहुत दान दिया।
महाराजा वैरीसिंह की भावना को आदर देते हुए बारात चार दिन अधिक टिकी रही।
कन्या की विदाई का समय आ गया।
माता-पिता के घर को छोड़कर जब कन्या दूसरे घर को अपना घर बनाने जाती है, तब माता-पिता के हृदय में अत्यधिक पीड़ा होती है। इस पीड़ा की कल्पना करना भी सहज नहीं है। यह वेदना पत्थर-दिल को भी पिघला देती है।
वीर विक्रमादित्य ४७