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________________ भी उपाय से यहां नहीं आएंगे, इसलिए मुझे योग्य और कुलीन कन्या के साथ पाणिग्रहण कर लेना होगा।' फिर भट्टमात्र की ओर दृष्टि घुमाकर महाराज बोले- 'तुम और बुद्धिसागर दोनों इस ओर प्रयत्न कर सकते हो। महात्मा भर्तृहरि रूप से दग्ध हुए हैं, इसलिए रूप नहीं, कुल पर विशेष दृष्टि रखना । गुण और संस्कारशून्य रूप विष में परिणत हो जाता है।' भट्टमात्र ने विनयपूर्वक कहा-'महाराज! मैंने एक श्रेष्ठ कन्या देखी है।' विक्रमादित्य ने प्रश्न-भरी दृष्टि से भट्टमात्र की ओर देखा। भट्टमात्र बोला- 'यहां से डेढ़ सौ कोस दूर आनर्त जनपद के एक कोने में लक्ष्मीपुर नाम का एक नगर है। वहां वैरीसिंह नाम का राजा राज्य करता है। उसकी एकाकी पुत्री है। उसका नाम है कमलावती। वह सोलह वर्ष की है-चतुर, संस्कारी और पूर्ण स्वस्थ।' नगरसेठ ने पूछा- 'राजा के एक ही संतान है ?' 'नहीं, रानी पद्मावती ने सात पुत्रों और एक पुत्री को जन्म देने का सौभाग्य पाया है।' भट्टमात्र ने कहा। बुद्धिसागर बोला--'तो फिर राजकुमारी का चित्र...' 'यदि महाराज आज्ञा दें, तो मैं शीघ्र ही मंगा लूंगा।' अभी तक शान्ति से सुनने वाले महाराजा विक्रमादित्य ने मौन भंग कर कहा- 'मित्र ! मेरी आज्ञा है।' दूसरे ही दिन भट्टमात्र ने लक्ष्मीपुर के महाराजा के पास एक दूत भेजा। उसके साथ एक पत्र भी था। बारहवें दिन दूत लौट आया। भट्टमात्र ने कमलावती की प्रतिकृति महाराज विक्रमादित्य को दिखाई। राजकुमारी कमलावती का चित्र अत्यन्त आकर्षक था। नयन भाव भरे थे। मुखमुद्रा शांत....लगता था। वह निर्दोष रूप की सरिता है। दो दिन तक विचार चला। अन्त में विक्रमादित्य ने अपनी सहमति दे दी। फिर क्या देर लगती ! तत्काल लक्ष्मीपुर के महाराजा के पास सारे समाचार प्रेषित कर दिये। लक्ष्मीपुर के राजभवन में ये समाचार पहुंचे। सभी लोग आनन्द में मग्न हो गए। एकाकी सुन्दर और संस्कारी कन्या को ऐसा तेजस्वी और समर्थ राजा पति के रूप में प्राप्त हो गया। ४६ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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