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सारी सभा ने आनन्द अभिव्यक्त किया ।
और उसी समय विक्रमादित्य ने घोषणा करते हुए कहा- 'आज से मैं भट्टमात्र को अपना महामंत्री नियुक्त करता हूं और अपने निजी सलाहकार के रूप में भी इन्हें प्रस्थापित करता हूं।'
सारी सभा ने महाराजा का जय-जयकार किया ।
महामंत्री बुद्धिसागर के मुख पर सहज उदासी छा गई ।
महामंत्री की ओर देखते हुए विक्रमादित्य बोले - 'महामंत्री जी ! आपके अधिकारों, मर्यादाओं या हितों को तनिक भी आंच नहीं आएगी। आप निश्चिंत रहें ।'
तत्पश्चात् बुद्धिसागर ने अपने महामंत्री पद की मुद्रिका महाराजा के हाथ सौंप दी।
विक्रमादित्य ने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक मंत्रीमुद्रिका भट्टमात्र को पहनाई और परिवार को तत्काल बुला लाने का आदेश दिया। हर्षोल्लासपूर्वक सभा सम्पन्न हुई ।
महाराजा विक्रमादित्य भट्टमात्र को साथ लेकर राजभवन में आ गए। भट्टमात्र दो दिन वहां रहे। महाराज ने बीती घटनाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन बताया।
भट्टमात्र अपने परिवार को लाने के लिए दो रथ लेकर गए। राज्य के महामंत्री होने के कारण साथ में दो सेवक और चार रक्षक भी गए।
पांच दिन के बाद भट्टमात्र अपने परिवार को लेकर अवंती नगरी में आ गए और महामंत्री पद पर कार्य करने लगे ।
एकाध सप्ताह में ही महामंत्री भट्टमात्र अपने उत्तम गुण और सुसंस्कारों के कारण राजसभा में आदरणीय बन गए और एक दिन वे मंत्रियों, नगरसेठ तथा अन्य संभ्रान्त व्यक्तियों के साथ महाराजा विक्रमादित्य के पास गए।
विक्रमादित्य ने नगरसेठ का आदरपूर्वक सत्कार करते हुए कहा- 'क्या बात है ? आज सब एकत्र होकर कैसे आए हैं ? क्या मेरे से कोई भूल हो गई है ?' 'भूल के शोधन के लिए ही तो आना पड़ता है।' नगरसेठ ने कहा । विक्रमादित्य को बड़ा आश्चर्य हुआ - 'अरे ! मैंने कौन-सी भूल कर डाली ।' वे बोले-'भूल बताओ, मैं उसका शोधन करूंगा।'
भट्टमात्र ने कहा-'कृपानाथ ! राजसिंहासन का वाम-भाग कब तक रिक्त रहेगा ?'
'ओह!' कहकर विक्रमादित्य हंस पड़े। उन्होंने नरगसेठ की ओर उन्मुख होकर कहा - 'मैं इस भूल का संशोधन शीघ्र ही कर लूंगा । महात्मा भर्तृहरि किसी
वीर विक्रमादित्य ४५