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________________ युवराज योगिनी के खंड में आए। योगिनी का रूप लावण्य देखकर वे अवाक् रह गए। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर कहा - 'क्षमा करें, योगिनीजी ! मैंने जब से आपको देखा है, मेरे मन में एक कुतूहल जागा है।' 'कुतूहल ?' मुस्कराती हुई योगिनी ने प्रश्न किया । 'हां । ' 'किस प्रकार का कुतूहल ?' 'आपने अभी यौवन के प्रथम चरण में पादन्यास किया है। आपका प्रत्येक अवयव तेजस्वी और आकर्षक है। इस छोटी उम्र में आपको संसार-त्याग क्यों करना पड़ा ?' योगिनी हंस पड़ी। यह हंसी इतनी वेधक थी कि युवराज के हृदय की धड़कन बढ़ गई । वह बोली- 'युवराजश्री ! मैंने अभी तक संसार - त्याग नहीं किया है, किन्तु संसार-त्याग की पृष्ठभूमि तैयार कर रही हूं।' 'मैं समझा नहीं..... ।' 'मेरे माता-पिता बहुत दूर देश में रहते हैं। वे सुखी और समृद्ध हैं । मेरे पर उनका अतुल प्रेम है । मेरा एक छोटा भाई भी है। मेरे प्रति उसकी ममता भी अपार है । इसलिए किसी दुःख से घबराकर मैंने संसार - त्याग करने का विचार नहीं किया है । ' 'तो फिर ?' 'इस संसार-त्याग के पीछे मेरे जीवन का एक अध्याय गुप्त पड़ा है। नीतिशास्त्र का अभिमत है कि अपरिचित व्यक्ति के समक्ष जीवन के गुप्त पृष्ठ की अभिव्यक्ति नहीं करनी चाहिए । फिर भी जिस कार्य की सम्पूर्ति के लिए मैंने यह व्रत ग्रहण किया है, वह यहां पूरा हो तो....' I युवराज ने बीच में ही प्रश्न कर डाला - 'देवी श्री ! मेरे हृदय की जिज्ञासा तीव्र है। यदि आप अपनी गुप्त बात मुझे कहेंगी तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि उसका दुरुपयोग नहीं होगा ।' ‘तब तो आपके समक्ष मुझे अपने जीवन का अध्याय खुलकर रखना होगा', कहकर योगिनी दो क्षण तक विचारमग्न होकर फिर बोली- 'कुमार श्री ! मैं ग्यारह महीने से निरंतर घूम रही हूं। विविध प्रदेशों की मैंने यात्रा की है। मेरे माता-पिता मेरा विवाह करना चाहते थे, किन्तु मैं यह चाहती थी कि यदि सुयोग्य पति मिले तो ही विवाह के सूत्र में बंधना है अन्यथा जीवनभर कौमार्यव्रत का ही पालन करना है, योगिनी बनकर विचरण करना है। मेरे माता-पिता मेरी बात से सहमत होकर बोले - एक वर्ष के भीतर तुम जिसको पसन्द करोगी, उसके साथ तुम्हारा पाणिग्रहण ४१० वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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