________________
मनमोहिनी नेमहाराजा के चरणों में मस्तक झुकाया। वीर विक्रम बोले-'पुत्री! तेरी विजय हो, यह मेरा आशीर्वाद है। ले, यह रत्नमाला धारण कर ले।'
वीर विक्रम ने एक अत्यन्त मूल्यवान् रत्नमाला पुत्रवधू को दी। विक्रम बोले- 'पुत्री, अब मेरे साथ-साथ चल । मैं तुझे जो कार्य सौंपना चाहता हूं, उसको अच्छी तरह से समझ ले।'
मनमोहिनी विक्रम के पीछे-पीछे चल पड़ी।
विक्रम और मनमोहिनी एक रथ में बैठ गए। रथ गतिमान हुआ और शिप्रा नदी के किनारे एक उपवन में प्रविष्ट हुआ।
रात्रि का समय था, इसलिए मनमोहिनी को कुछ भी स्पष्टता से नहीं दिख पा रहा था।
___ वह एक छोटा उपवन था। उस उपवन में एक भूगृह था। उसमें दो कक्ष थे-एक शयनकक्ष और दूसरा शौच-स्थान आदि के लिए उपयुक्त कक्ष । शयनकक्ष में सारी सामग्री व्यवस्थित ढंग से पड़ी थी। पलंग, बिस्तर, जल-कुंभ आदि
आदि आवश्यक चीजें वहां रखी हुई थीं। उस भूगृह में एक ही जाली थी। उसमें से मंद प्रकाश आता था। वह जाली इतनी ऊंची थी कि सामान्य मनुष्य का हाथ उस तक नहीं पहुंच पाता था।
वहां आकर रथ रुका। वीर विक्रम बोले- 'पुत्री, अब हम उपयुक्त स्थान पर आ गए हैं। तू नीचे उतर।'
मनमोहिनी ननुनच किए बिना नीचे उतरी। उसी समय एक दासी दीपक लेकर आ पहुंची।
वीर विक्रम नेदासी के सामने देखकर कहा-'सुमित्रा! सब ठीक हैन?' 'हां, कृपानाथ!' 'द्वार खोल!'
सुमित्रा ने तत्काल भूगृह का द्वार खोला। वीर विक्रम पुत्रवधू के साथ गर्भगृह के द्वार के पास आए। उन्होंने दासी के हाथ से दीपक लेकर मनमोहिनी से कहा'मेरे पीछे-पीछे चली आ।'
सुमित्रा द्वार के पास खड़ी रही। वीर विक्रम और मनमोहिनी दस-बारह सोपान नीचे उतरे और एक खंड में पहुंचे। उसमें एक छोटा-सा दीपक जल रहा था। विक्रम ने अपने हाथ वाला दीपक द्वार के पास रखकर कहा- 'बेटी! इस स्थान की कोई कल्पना है?'
'हां...।'
'क्या?'
वीर विक्रमादित्य ४०१