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________________ को विचलित किया है। आपके पुत्र ने ऐसा कौन-सा बड़ा कार्य किया है, जिसके चरित्र के समक्ष स्त्री-चरित्र न्यून लगता है?' वीर विक्रम मनमोहिनी के तेजस्वी मुख को स्थिरदृष्टि से देखते रहे। सुदंत सेठ का हृदय धड़क रहा था। इस प्रकार स्पष्ट उत्तर देने वाली कन्या पर विक्रम क्या नहीं कर देंगे? अरे! यह अचिन्तित विपत्ति कहां से आ पड़ी? विक्रम बोले'पुत्री! तुझे जो कहना हो वह नि:संकोच होकर कह। किन्तु मेरी मूर्खता का अभी तक मुझे ज्ञान नहीं हुआ। तू स्पष्टता से कह।' । _ 'राजराजेश्वर! आपको अभी तक किसी स्त्री के चरित्र का पूरा अनुभव नहीं है।' मनमोहिनी ने कहा। 'पुत्री! तेरा कथन सही है। मुझे स्त्री-चरित्र का अनुभव तो हुआ है, पर वे स्त्रियां कुलटाएं थीं। विक्रमचरित्र किसी स्त्री के साथ चंचल नहीं हुआ। मैं ऐसी स्त्री को देखना चाहता हं जो विक्रमचरित्र की बुद्धि से अधिक तेजस्वी हो और अपने बुद्धिबल से विक्रमचरित्र को पराजित करे । यदि ऐसा होता है तो मेरी घोषणा मूर्खतापूर्ण कही जा सकती है, अन्यथा नहीं।' 'महाराज! अभी तो मेरा उपासना का समय हो गया है, कल फिर मिलूंगी।' मनमोहिनी ने गंभीरता से कहा। महाराज ने रथ मंगाया और उसे घर भेज दिया। ७२. संघर्ष का प्रारंभ दूसरे दिन मनमोहिनी अपने पिता के साथ महाराजा के पास पहुंची। उसने कहा'कृपावतार! आपने कल जो शर्त रखी थी, वह तो भविष्य की बात हो सकती है। युवराजश्री जब कभी स्त्री के साथी बनें और वह स्त्री भी बुद्धिमती मिले, तब जयपराजय का निर्णय हो सकता है।' 'यह ठीक है। मेरे मन में एक विचार आ रहा है।' विक्रम ने कहा। 'कृपानाथ! कहें, क्या विचार है?' 'तू ने युवराजश्री को देखा है?' 'हां, जब महादेवी की शोभायात्रा निकली थी, तब।' 'विक्रमचरित्र तुझे कैसा लगा?' 'दिखने में सुंदर हैं, सशक्त हैं और सौम्य भी हैं, किन्तु उनकी बुद्धि का परिचय मुझे नहीं है।' मोहिनी ने कहा। 'यदि इस परिचय का एक अवसर दूं तो?' ३६८ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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