SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाप्रतिहार अजय ने कक्ष में प्रवेश कर कहा- 'महाराज की जय हो! सेठजी आएं हैं। उनकी पुत्री रात्रि में कहीं आती-जाती नहीं।' सेठजी को लेकर अजय कक्ष में गया। सेठजी ने महाराजा को देखते ही कहा- 'राजेश्वर की जय हो!' दोनों एक आसन पर बैठे। वीर विक्रम ने कहा- 'सेठजी, मुझे आपकी कन्या से ही मुख्य कार्य था।' _ 'यदि आप मुझे कहेंगे तो मैं अपनी पुत्री को....।' ___ सेठजी! कल रात मैं नगरचर्चा के लिए गया था। उस समय आपकी पुत्री ने मेरे एक कार्य को मूर्खतापूर्ण कहा था। मैं यह जानना चाहता हूं कि मेरा कौन-सा कार्य मूर्खतापूर्ण है?' __ 'कृपानाथ! मेरी कन्या नादान है। एकाकी पुत्री होने के कारण वह बहुत लाड-प्यार में पली-पुसी है। उसने कुछ कहा, इसके लिए मैं क्षमायाचना करता हूं।' 'सेठजी! आपकी कन्या को मैं कुछ कहना नहीं चाहता। मैं अपना दोष जानना चाहता हूं। कल प्रात:काल सूर्योदय के पश्चात् अपनी पुत्री को तैयार रखें। मैं रथ भेजूंगा।' . 'अच्छा, कृपानाथ!' सेठ अत्यन्त शोकाकुल हो गए थे। महाराजा ने सेठजी को आदर-सहित विदा किया। दूसरे दिन सूर्योदय के पश्चात् सेठ सुदंत और उनकी कन्या मनमोहिनी रथ में बैठकर राजभवन की ओर विदा हुई। वीर विक्रम प्रात:कार्य से निवृत्त होकर, पूजा-उपासना सम्पन्न कर मंत्रणागृह में आ गए। उसी समय सेठ और उनकी कन्या वहां आ पहुंची। मनमोहिनीने पूछा- 'महाराज! क्या आज्ञा है?' पुत्री! परसोंरात तूअपनी सखियों केसाथ बातचीत कर रही थी। उस समय तूने मेरी घोषणा को मूर्खतापूर्ण कहा था। मैं इसे समझना चाहता हूं।' 'कृपानाथ! माता-पिता का अपनी संतान के प्रति विशेष प्रेम होना अस्वाभाविक नहीं है। इसी प्रेम के वशीभूत होकर आपने यह घोषणा की, ऐसा प्रतीत होता है। किन्तु स्त्री की तीव्र बुद्धि की ओर आपने ध्यान नहीं दिया। आपने पुरुष जाति की श्रेष्ठता स्थापित कर स्त्री जाति की अवमानना की है। नारी निर्बल नहीं होती। कृपावतार! स्त्री की शक्ति बेजोड़ होती है। वह यदि चाहे तो इन्द्र, चन्द्र, सूर्य आदि महान् देवताओं को भी बांध सकती है। स्त्री का नाम भले ही अबला हो, पर वह महान कार्य संपादित करने में समर्थ है। आप स्त्री की शक्ति की ओर दृष्टि करें। स्त्री ने बड़े-बड़े सम्राटों को धूल चटाई है। उसने बड़े-बड़े ऋषियों वीर विक्रमादित्य ३६७
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy