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वे वहां से आगे चले और यह भवन सेठ सुदंत का है, यह निश्चय कर सीधे राजभवन में आ गए।
शय्या पर सोने के पश्चात् भी वे विचारों से मुक्त नहीं हो सके। अन्त में उन्होंने मन-ही-मन यह निर्णय कर लिया कि सुदंत सेठ और उसकी कन्या को राजभवन में बुलाना और.....
दूसरे दिन की संध्या पूरी हुई। वीर विक्रम अपनी कुछेक रानियों को साथ लेकर राजभवन के उद्यान में गए। वहां महाप्रतिहार अजय को बुलाकर वीर विक्रम ने कहा- 'सुदंत सेठ के भवन पर जाओ और सेठ तथा उनकी कन्या को यहां बुला लाओ।' ___महाप्रतिहार तत्काल रथ लेकर सुदंत सेठ के भवन की ओर गया। उस समय सुदंत, उनकी पत्नी और पुत्री-तीनों प्रतिक्रमण की उपासना करने बैठ गए थे।
भवन की परिचारिका ने महाप्रतिहार को आदर सहित बिठाते हुए कहा'सेठजी तो अभी प्रतिक्रमण करने बैठे हैं। उन्हें कुछ समय और लगेगा।'
अजय उनकी प्रतीक्षा में वहीं बैठा रहा। कुछ समय पश्चात् वस्त्र बदलकर सेठ सुदंत बैठक-कक्ष में आया।
महाप्रतिहार ने कुशलक्षेम पूछकर कहा- 'राजराजेश्वर की आज्ञा है कि आप और आपकी सुपुत्री मेरे साथ रथ में राजभवन चलें। महाराजा आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।'
'मेरी पुत्री के साथ?' 'हां, सेठजी!' 'परन्तु ऐसा क्या काम है कि....'
बीच में ही प्रतिहार बोल पड़ा- 'मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं है। तुझे तो आपको आदरसहित साथ लाने को कहा है।'
सुदंत सेठ विचार में पड़ गया। वह तत्काल उठकर अपनी पत्नी के कक्ष में गया और राजाज्ञा की बात बताई। पुत्री भी वहीं थी। उसने कहा-'पिताजी! इसमें चिन्ता की क्या बात है? आप जाएं और महाप्रतिहार को कहें कि मेरी पुत्री रात्रि में भवन के बाहर नहीं निकलती।'
सेठ वस्त्र बदलकर महाप्रतिहार के पास आया और बोला- 'चलो, मैं आ रहा हूं। मेरी पुत्री रात्रि में भवन के बाहर नहीं निकलती।'
महाप्रतिहार सेठ को रथ में बिठाकर राजभवन की ओर चल पड़ा। वीर विक्रम उपवन से बैठक-खंड में आकर सेठजी की प्रतीक्षा कर रहे थे।
३६६ वीर विक्रमादित्य