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________________ ‘हां, मां ! सही चोरी नहीं, किन्तु अवंती में हलचल मचाना चाहता हूं। मेरा प्रयोजन सिद्ध होने पर मैं चोरी का माल उनके स्वामियों के पास पहुंचा दूंगा।' माता के वदन पर मधुर हास्य उभरा और उन्होंने पंचधातु का एक कड़ा देवकुमार को देते हुए कहा- 'वत्स ! यह कड़ा तू अपनी बायीं भुजा पर धारण कर लेना । कोई भी तुझे नहीं पकड़ पाएगा । तेरा प्रयोजन सिद्ध होने पर तू इस कड़े को शिप्रा नदी में बहा देना ।' देवकुमार ने कड़े को वहीं धारण कर लिया। उसका हृदय नाचने लगा। कानों में पुन: शब्द टकराए - 'वत्स! बाहर मिठाई से भरे बर्तन पड़े हैं। उनमें से मिठाई खाकर तीन दिन की तपस्या का पारणा कर लेना । शेष मिठाई सबको बांट देना ।' प्रकाश अदृश्य हो गया। हरसिद्ध माता की सौम्य मूर्ति शोभित हो रही थी । प्रात: मुख्य पुजारी आया । देवकुमार ने पुजारी का चरण- -स्पर्श किया और कहा - 'महात्मन्! आपकी कृपा से माताजी मेरे पर प्रसन्न हो गई हैं। बाहर मिठाई से भरे बर्तन पड़े हैं। उसको बांटने की आज्ञा माताजी ने दी है।' पुजारी ने सारी मिठाई बांट दी । मंदिर से चलकर वह अपने स्थान पर आया । माली ने कहा-'महाराज ! आपकी चिन्ता हमें सता रही थी। हमने तीन दिनों से भरपेट अन्न भी नहीं खाया ।' देवकुमार बोला- 'माता की आराधना पूरी हो गई है। लो, यह प्रसाद सभी को बांट दो’– कहकर उसने माली के हाथ में मिठाई का एक पूड़ा दिया । - मध्याह्न के पश्चात् वेश बदलकर वह बाहर आया। उस समय माली की पत्नी बाहर खड़ी थी और माली भीतर विश्राम कर रहा था । पत्नी बोली'महाराज ! कहां जा रहे हैं ? क्या मैं रामली के पिता को जगाऊं !' 'नहीं, बहन ! अभी मैं बाहर जाता हूं। कल प्रात: लौट आऊंगा।' देवकुमार वहां से सीधा शिप्रा के घाट पर गया और एक नौका में बैठकर विक्रमगढ़ की ओर चल पड़ा । पुत्र को गए आज पांच दिन हो गए थे, इसलिए सुकुमारी अधिक चिन्तातुर हो गई थी। उसके मन में अनेक विचार आने लगे। संध्या के समय देवकुमार आ पहुंचा। मां के नयन खुशी से भर गए । देवकुमार ने आराधना की बात बताई । सुकुमारी बहुत प्रसन्न हुई । दूसरे दिन देवकुमार अवंती चला गया। वह अपने निवास पर आया और एक ताड़पत्र पर विक्रमादित्य के नाम से संदेश लिखा ३४६ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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