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________________ रात्रि में माता और पुत्र एक ही शयनगृह में सोते थे। सोने का समय हुआ। देवकुमार अपनी शय्या पर जाकर सो गया। आज उसे श्रम अधिक हुआ था, फिर भी उसे नींद नहीं आ रही थी; क्योंकि आज वह सारी परीक्षाओं में प्रथम आया था। उसने सोचा, मेरे पिता सामान्य संगीतकार तो नहीं हैं। अवश्य ही वे कोई वीर पुरुष हैं। इसके बिना मेरे में इतनी श्रेष्ठता आ नहीं सकती। मेरी मां पिताजी के विषय में कुछ नहीं जानती। वे कहां रहते हैं, यह भी उसे ज्ञात नहीं है। आज इस बात की जानकारी करके ही सोना है। इन विचारों में उछलकूद करता हुआ देवकुमार जागृतावस्था में शय्या पर करवटें बदलने लगा। जब आदमी कुछ अवस्था प्राप्त करता है, तब ऐसे विचार उसमें उभरते ही हैं। लगभग दो घटिका के पश्चात् सुकुमारी अपने माता-पिता को प्रणाम कर शयनगृह में आयी। माता को देखते ही देवकुमार शय्या पर बैठ गया। यह देखकर सुकुमारी बोली- 'क्यों बेटा! अभी तक जाग रहे हो?' 'हां, मां! आज मुझे नींद नहीं आ रही है। आज मेरे धनुर्विद्या के आचार्य मुझे शाबाशी देते हुए बोले- 'देव! तुम किसी महान् पिता के पुत्र हो। इसके बिना इतनी श्रेष्ठता आ नहीं सकती।' मां ! मेरा चित्त पिताजी से मिलने के लिए आकुल हो रहा है। जब-जब मैं तुमसे पिताश्री के बारे में पूछता हूं, तुम या तो गमगीन हो जाती हो या बात टाल देती हो। क्या वास्तव में ही तुम पिताश्री का अता-पता नहीं बता सकतीं?' सुकुमारी के मुख पर विचारों की बदली छा गई। दो क्षण मौन रहकर वह बोली 'देव! तेरे पिताश्री मेरे नयन-मन में सदा निवास करते हैं।' 'तो फिर वे यहां क्यों नहीं आते?' "वे पूर्व भारत की किसी संगीत परिषद में भाग लेने गए थे। वहां से लौट आने के लिए कहा था, पर वे आज तक नहीं आए। मेरे पिताजी ने उनकी बहुत खोज की, पर उनका कोई अता-पता नहीं मिला।' 'मां! क्या मेरे पिताश्री के साथ तुम्हारी अनबन थी?' 'नहीं, बेटा! वे तो मेरे प्राणों के स्वामी थे। प्राणनाथ से कैसी अनबन?' - दो क्षण सोचकर देवकुमार बोला- 'मां! उनका देश कौन-सा है, क्या तुम मुझे बता सकती हो?' 'नहीं, बेटा! यदि मुझे ज्ञात होता तो....' कहती-कहती सुकुमारी शय्या से अचानक उठ खड़ी हुई। आज पन्द्रह वर्ष पश्चात् उसे एक विस्मृत बात याद वीर विक्रमादित्य ३३६
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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