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________________ एक बार संगीतज्ञ के रूप में विक्रम यहां आए थे और सुकुमारी के हृदय से नर-द्वेष को समाप्त कर उससे विवाहसूत्र में बंधे थे। सुकुमारी गर्भवती हुई और विक्रम संगीत परिषद् के बहाने अपनी राजधानी में आ गए थे। राजकार्य और विविध जिज्ञासाओं की तृप्ति में वे इतने ओत-प्रोत हो गए कि उनके मन से सुकुमारी की स्मृति लगभग मिट चुकी थी । सुकुमारी अपने प्रियतम को क्षणभर के लिए भी नहीं भूली थी । कामदेव के समान सुरूप पुत्र उसे प्राप्त हुआ। पुत्र बड़ा होने लगा। पति की प्रतीक्षा करतेकरते उसके आंसू भी सूख गये। देवकुमार को तैयार करने के लिए उसने अपनी सारी शक्ति लगा दी । वीर विक्रम ने सुकुमारी से विदा होते समय उसे एक पेटी दी थी। उसमें अपना सही परिचय लिख रखा था। सुकुमारी ने वह पेटी नगर से बाहर एक भवन में सुरक्षित रखवा दी थी। इस पेटी का स्मरण उसे रहा ही नहीं। वह उसे सर्वथा भूल गई, क्योंकि राजभवन में आने के पश्चात् वह नगर के बाहर वाले भवन में गई नहीं । आज अपने प्रिय पुत्र देवकुमार का जन्मोत्सव था और विद्याभ्यास का अंतिम दिन। देवकुमार प्रत्येक विषय में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण रहा था। माता का हृदय प्रसन्नता का अनुभव कर रहा था। उसे सबसे अधिक प्रसन्नता तो इस बात की थी कि देवकुमार की आकृति पिता की आकृति के समान ही थी । पुत्र को देखकर माता को स्वामी की स्मृति हो आती । तलवारयुद्ध में जब देवकुमार ने राज्य के महाबलाधिकृत के पुत्र को पराजित किया, तब सारी सभा हर्षध्वनि से गूंज उठी। देवकुमार ने दोनों हाथ जोड़कर सबको नमन किया। मल्लयुद्ध प्रारम्भ हुआ। देवकुमार का प्रतिद्वन्द्वी था एक ब्राह्मण युवक । एक घंटे तक दोनों के विविध दांवपेच चलते रहे । अन्त में कोई पराजित नहीं हुआ। अंत में दोनों समकक्ष घोषित हुए। फिर धनुर्विद्या की परीक्षा हुई और उसमें देवकुमार प्रथम आया । फिर विविध शस्त्र-संचालन में भी देवकुमार प्रथम आया । आचार्य ने सभी विद्यार्थियों में देवकुमार को श्रेष्ठ घोषित किया। समग्र सभा ने ध्वनि की । महाराजा शालिवाहन ने अपने दोहित्र को छाती से लगाया। सारे राज्य में घर-घर मिठाइयां बांटी गईं। देवकुमार अपने नाना का चरणस्पर्श कर सीधा अपनी माता और नानी के पास आया। महादेवी ने देवकुमार के मस्तक पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। सुकुमारी ने सजल नयनों से देवकुमार को छाती से लगाकर मस्तक चूमा। ३३८ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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