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________________ शोभायात्रा जब राजभवन के पास पहुंची, तब अपराह्नकाल हो गया था। राजभवन में प्रवेश करते ही सभी दास और परिचारिकाओं ने अवधूत महाराज का सत्कार किया। __नये राजा आज प्रात:काल से कुछ भी भोजन नहीं ले सके, इसलिए मंत्रियों ने राजप्रासाद में आने के लिए विनीत स्वरों में प्रार्थना की। प्रासाद में जाकर अवधूत महाराज ने स्नान से निवृत्त होकर भोजन किया और राजभवन में स्थित श्रीजिन-प्रासाद में दर्शनार्थ जाने की इच्छा व्यक्त की। महाप्रतिहार तथा आठ-दस दासियों के साथ विक्रमादित्य जिन-प्रासाद की ओर गए। ६. मित्र बनाया अवधूत महाराज भगवान् की पूजा कर राजभवन में आए, तब तक अनेक व्यक्ति उनसे मिलने के लिए एकत्रित हो चुके थे। थोड़े समय पश्चात् राजभवन के प्रांगण में निर्मित मंडप में नृत्य प्रारम्भ हो गया। उस समय अवंती में राजनर्तकी की प्रथा नहीं थी, इसलिए नगर की उत्तम नृत्यांगनाओं और गायिकाओं को निमंत्रित किया गया था। नृत्य और गान सम्पन्न होने पर महामंत्री ने अवधूत महाराज के नाम पर संगीतकारों को पारितोषिक दिया और जब अवधूत महाराज राजप्रासाद के शयनकक्ष की ओर महाप्रतिहार के साथ गए, तब रात्रि का दूसरा प्रहर बीत चुका था। ___ अवधूत वेशधारी विक्रमादित्य ने शयनकक्ष में प्रवेश किया....उन्होंने देखा कि खाद्य-सामग्री से भरे-पूरे अनेक थाल वहां रखे हुए हैं....अनेक प्रकार के फल भी वहां थे और उड़द के बाकलों से भरे दस थाल एक चौकी पर रखे हुए थे। केसरिया दूध के दो घड़े भी वहां पड़े थे। राजप्रासाद के चारों ओर पहेरदार घूम रहे थे। सौ सुभट हाथ में तलवार लेकर इधर-उधर घूम रहे थे। उपवन में सौ सैनिक अपने शस्त्रास्त्रों से सज्जित बैठे थे। विक्रमादित्य ने विशाल शयनकक्ष के सारे वातायन बन्द कर दिए...मुख्य द्वार भी खुला नहीं रखा....फिर उन्होंने रत्नजटित पर्यंक की ओर देखा...यह वही पर्यंक था जिस पर बड़े भाई भर्तृहरि सोते थे....यह पर्यंक एक नौका के आकार का था....उसमें जटित रत्न चमक रहे थे और अंधकार में प्रकाश फैला रहे थे। अवधूत विक्रमादित्य ने मुकुट तथा अन्यान्य अलंकार शरीर से उतारे और वहां रखी हुई एक त्रिपदी पर स्थित थाल में रख दिए, फिर कमर में बंधा हुआ राजकुल के शौर्य का प्रतीक खड्ग निकाला और उसे पर्यंक पर रख लिया। वीर विक्रमादित्य २७
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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