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पूर्णिमा खंड में गयी और कमला रानी के समक्ष खड़ी रहकर बोली'महादेवी ! रानी मदनमंजरी का शव लेकर विजय लौट आया है।'
यह समाचार सुनते ही कमला बिछौने पर बैठ गई और बोली-'तू क्या कह रही है?'
'मैं सत्य कह रही हूं, महादेवी! सभी भवन के प्रांगण में खड़े हैं।'
'ओह, तू जल्दी जा और विजय को महाराजा के आरामगृह में भेज दे', कहकर कमला पलंग से नीचे उतरी, वस्त्रों को व्यवस्थित कर महाराज के आरामगृह की ओर गयी।
कमला ने एक दासी को कला को बुलाने के लिए भेजा और स्वयं दरवाजा खोलकर अंदर गयी।
वीर विक्रम शान्तभाव से सो रहे थे। निद्रा गाढ़ थी। कमला पलंग के पास गयी और स्वामी के मस्तक पर हाथ रखते हुए बोली- 'कृपानाथ!'
प्रिया का मधुर स्वर!
विक्रम ने धीरे-से आंखें खोली। कमला रानी की ओर देखा। कमला बोली- 'स्वामिन् ! देवी मदनमंजरी का निर्जीव देह....।'
'क्या ?' कहकर विक्रम शय्या पर बैठ गए।
उसी क्षण महाप्रतिहार अजय और नायक विजय भी आ पहुंचे। वीर विक्रम का जयकार करते हुए वे अन्दर आए। उसी समय कलावती भी आ पहुंची।
विक्रम शय्या से नीचे उतरकर एक आसन पर बैठ गए। विजय ने हाथ जोड़कर मदनमंजरी के आत्महत्या का वृत्तान्त कह सुनाया।
यह सुनकर विक्रम कुछ समय तक स्तब्ध रह गए। वीर विक्रम ने सोचा और यह निर्णय किया कि इसका दाह-संस्कार एक रानी के रूप में होना चाहिए।
उन्होंने अजय से कहा- 'महामंत्री को बुला भेजो और यह बात प्रसारित कर दो कि देवी मदनमंजरी का अवसान हो गया है।'
अपराह्न के समय तक सारा राजभवन शोकसागर में डूब गया और संध्या से पूर्व रानी मदनमंजरी की शव-यात्रा धूमधाम से श्मशान पर पहुंची और उचित ढंग से रानी का दाह-संस्कार सम्पन्न हुआ।
कमला जान गई थी कि मंजरी ने प्रायश्चित्त करने के लिए ही देह-त्याग किया है। परन्तु और किसी के मन में ऐसा संशय हुआ ही नहीं।
तीन दिन बीत गए । चौथे दिन विक्रम स्नान आदि से निवृत्त होकर अपने कक्ष में बैठे थे। उस समय अजय कक्ष में प्रविष्ट हुआ और प्रणाम कर बोला'कृपानाथ! महाकाल महादेवी के मंदिर से दो पुजारी आए हैं।'
३३२ वीर विक्रमादित्य