SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'अभी?' ‘हां, कृपानाथ! कोई संन्यासी महाकाल के मंदिर में आया है और वह अपने दोनों पैर महादेव के लिंग की ओर लम्बे कर सो रहा है। पुजारियों ने उसे बहुत समझाया, किन्तु वह वैसे ही सो रहा है।' 'भगवान् महाकाल का अपमान करने वाला क्या अभी तक जीवित है ? अजय! पुजारियों के साथ दो-चार सैनिकों को भेजकर उस संन्यासी को मंदिर से बाहर निकाल दो और यदि वह न माने तो उस पर कोड़े बरसाए जाएं।' अजय प्रणाम कर तत्काल चला गया। इधर महाकाल के मंदिर में बहुत हलचल हो रही थी। संन्यासी महाकाल के लिंग की ओर पैर कर आराम से सो रहा था। उसकी दाढ़ी बहुत लम्बी थी । उसके मस्तक के बाल लम्बे और अव्यवस्थित थे । उसके वदन पर अपूर्व तेज था। उसके नयन बंद थे, फिर भी यह सहज अनुमान होता था कि वह तेजस्वी है। उसका शरीर सुदृढ़ और सुगठित था । पुजारियों ने पहले संन्यासी से अनुनय-विनय किया। संन्यासी अपने आग्रह पर अड़ा रहा। पुजारी रोष में आ गए। वे कटु शब्दों में संन्यासी की भर्त्सना करते हुए बोले- 'अरे ओ पागल ! भगवान् की ओर पैर करते तुझे लज्जा नहीं आती। लगता है, तू संन्यासी नहीं, कोई अयोग्य है ।' संन्यासी मौन ! उत्तर कौन दे ? पुजारी अपना प्रयत्न कर रहे थे। गांव के हजारों नर-नारी एकत्रित हो गए। सब इस विचित्र संन्यासी को देख रहे थे। इतने में ही चार सैनिकों के साथ वे दोनों पुजारी वहां पहुंच गए। मुख्य पुजारी संन्यासी के पास पहुंचा और अनुनय करते हुए बोला – ‘बाबाजी ! अब आप उठ जाइए, अन्यथा हमें अनुचित प्रकार से भी आपकी इस हरकत को मिटाना होगा।' संन्यासी ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह उसी प्रकार से सो रहा था। लोग सोच रहे थे - यह संन्यासी कौन होगा ? भगवान् महाकाल के तेजस्वी और प्रभावक लिंग के समक्ष पैर कर क्यों सो रहा है ? चारों सैनिक मंदिर के गर्भगृह में गए। पुजारी ने उनको सारी स्थिति बताई । नायक बोला-'बाबाजी को उठाकर मंदिर के बाहर फेंक देना चाहिए । ' उसने अपने साथियों के साथ बाबाजी को उठाने का प्रयत्न किया, किन्तु यह क्या....बाबाजी टस से मस नहीं हुए। एक सूत भी वह ऊपर नहीं उठे। सभी पुजारी और नायक आश्चर्य में डूब गए । नायक के मन में विचार आया- अरे, मैं पांच मन जितना वजन हाथ से उठाकर फेंक देता हूं, पर आज वीर विक्रमादित्य ३३३
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy