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________________ 'कमला ! इन शब्दों को सुनकर सौभाग्यकुमारी की परीक्षा करने का विचार मेरे मन में उठा, इसलिए सीधा तुम्हारे पास आ गया।' 'आप परीक्षा कैसे करेंगे? अभी तो वह कुंवारी है और विवाह के पश्चात् वह कहां जाएगी, कोई कह नहीं सकता।' 'सुनो तो सही, यदि तुम कहो तो मैं उसे अपनी पत्नी बनाकर यहां ले आऊं और उसे एकान्त महल में रखू, फिर देखू कि वह अपने पति को गुलाम कैसे बनाती है और अन्य पुरुषों के साथ कैसे यौवन की मस्ती का आनन्द लेती है ?' कमला खिलखिलाकर हंस पड़ी। उसके मधुर हास्य से सारा शयन-कक्ष मुखरित हो गया। वीर विक्रम तत्काल गंभीर होकर बोले-'तुम्हें हंसी क्यों आ रही है?' 'प्राणनाथ! आपकी बात ही हास्यास्पद है। एक स्त्री की परीक्षा के लिए रानियों की संख्या क्यों बढ़ानी चाहिए? जो स्त्री सदाचार से दूर है और चतुर है तो वह अपना सोचा हुआ कार्य करके ही सांस लेती है। आप सौभाग्यसुन्दरी से विवाह कर, उसे एकान्त महल में रख दें, फिर भी यदि वह परपुरुषगामिनी बने तो आपकी कितनी निन्दा होगी?' 'कमला ! बात ठीक है। किन्तु रूप और यौवन के अभिमान में मस्त बनी सौभाग्यसुन्दरी के गर्व का खंडन कैसे हो?' विक्रम के वक्षस्थल पर मस्तक रखते हुए कमला बोली- 'प्राणेश! संसार में स्त्री-चरित्र का पार अभी तक किसी ने नहीं पाया है। नारी एक महान् शक्ति है। यदि यह शक्ति सही मार्ग पर लगे तो वह पृथ्वी पर स्वर्ग खड़ा कर सकती है और यदि गलत मार्ग पर लगे तो वह संसार को श्मशान बना सकती है। आपने मुझे उमादे की बात बताई थी। उसके चरित्र के पीछे कितना दंभ था?' रात काफी बीत चुकी थी। विक्रम ने कमला को बाहुपाश में जकड़ा और... प्रात: शौच आदि से निवृत्त होकर वीर विक्रम राजसभा में गए। उस समय उनके मन में स्त्री-चरित्र का ऊहापोह चल रहा था। उन्होंने महामंत्री भट्टमात्र से पूछा- 'क्या स्त्री-चरित्र नहीं जाना जा सकता?' ___ 'हां, महाराज! स्त्री-चरित्र अकल्पनीय होता है। उसका पार पाना सहज नहीं है। भगवान भी स्त्री-चरित्र के समक्ष अवाक रह जाते हैं।' भट्टमात्र ने कहा। ___मित्र ! स्त्री-चरित्र को अनुभव करने का साधन क्या है?' 'कृपानाथ! यह अनुभव करने योग्य वस्तु नहीं है। यह तो तीव्र विष के समान है।' 'फिर भी।' ३१६ वीर विक्रमादित्य
SR No.006163
Book TitleVeer Vikramaditya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahraj Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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