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कमलारानी बोली-'आपकी कठिनाई को मैं समझती हूं किन्तु अब आपको कुछ प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए। अभी आप युवा हैं, प्रियदर्शन हैं। आपको देखकर कोई भी नारी आपके प्रति आकर्षित होती है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। किन्तु अन्त में यह बंधन बहुत कठोर हो जाता है।'
'अब मैं सावधान रहंगा। अब पंचदंड का कार्य भी सम्पन्न हो गया है....आज रात्रि में सभी पत्नियों को रंगभवन में बुला लेना। मैं सबको पंचदंड की बात बताऊंगा।' विक्रम ने कहा।
रात हुई। रंगभवन में पैंतालीस पत्नियों के मध्य बैठकर विक्रम ने पंचदंड की पूरी बात बताई। सभी रानियां हर्ष से उल्लसित हुईं।
दूसरे दिन वीर विक्रम ने नागदमनी को बुलाकर कहा.-'देवी! अब मेरे पास पांचों दंड हो गए हैं-सर्वरस दंड, वज्र दंड, भूमि-विस्फोटक दंड, विषापहर दंड और मणि दंड। अब छत्र के निर्माण में क्या सामग्री शेष रह जाती है?'
___ 'महाराज! देवताओं और असुरों के लिए भी जो कार्य अशक्य था, उसे आपने शक्य कर दिखाया। अब मैं एकाध महीने में पंचदंड का छत्र तैयार कर दूंगी। आपने जहां मेरी कन्या देवदमनी के साथ शतरंज का खेल खेला था, वह भूमि अत्युत्तम है। वहीं आप एक सभामंडप का निर्माण कराएं। वहीं बत्तीस पुतलियों वाला सिंहासन रखें । उस सिंहासन पर ही मैं पंचदंड छत्र का निर्माण करूंगी और उन अमूल्य वस्तुओं के संरक्षण की मांत्रिक व्यवस्था भी कर दूंगी।'
नागदमनी आशीर्वाद देकर चली गई।
महाराजा विक्रमादित्य ने सभामंडप तैयार करने का आदेश दे दिया और लगभग एक हजार कारीगर इस कार्य में जुट गए।
एक महीने में नागदमनी ने छत्र तैयार कर महाराज को अर्पित करते हुए कहा- 'महाराज! छत्र तैयार है। अब प्रतिदिन आपको अपने इष्टदेव की पूजा अर्चना कर इस छत्र का उपभोग करना होगा।'
चौथे महीने में सभामंडप तैयार हो गया-भव्य, सुन्दर और कलात्मक।
इस सभामंडप में बत्तीस पुतलियों वाला सिंहासन रखा। नागदमनी ने दैवी शक्ति वाले पंचदंड के छत्र को उस सिंहासन के ऊपर व्यवस्थित किया और दोनों दुर्लभ वस्तुओं की रक्षा के लिए मांत्रिक व्यवस्था की।
महाराज विक्रमादित्य राजपुरोहित के द्वारा शुभ दिन में उस सिंहासन पर महादेवी कमला के साथ विराजमान हुए।
सभामंडप में दो हजार व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था थी। सभी ने महाराज विक्रमादित्य का जयनाद किया। ३१४ वीर विक्रमादित्य